भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
सलाह
तुम,
कहते जाओ
रुकना नहीं
बिना कहे पूरी बात
अपने अकुलाए मन की।
दरअसल,
होठों से न फूटने पर
तुम्हारा दर्द
बह निकलेगा
नमकीन पानी के रूप में
और
तुम,
साबित न कर पाओगे
आंसुओं की शुद्धता।
क्योंकि
अपने शहर का मिजाज़-
बहुत 'पानीदार' है!
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