भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
करता रहूँगा इन्तज़ार
मैं
बोलूँगा
तब तक,
जब तक
थम नहीं जाता
तुम्हारी आवाज़ का शोर,
मैं
नहीं रोकूँगा
अपने पैर
जब तक
तुम्हारे मदमस्त कदम
थक कर चूर नहीं हो जाते,
मैं
देखता रहूँगा
जब तक
अँधेरे में भी
सच देखने के काबिल न हो जाऊँ,
मैं
खाता रहूँगा ठोकरें
जब तक
बूटों में फंसे
तुम्हारे, अथक पाँव
जवाब नहीं दे देते
तुम्हें।
मैं
बूँद-बूँद जमा होता रहूंगा
जब तक
तुम्हारे
अथाह अस्तित्व के
बराबर न हो जाऊं।
और
मैं,
करता रहूंगा इन्तजार
तब तक
जब तक
नवजात सूर्य
रात की नाभि का
अमृत सोखकर
न आ बैठेगा-
सुनहरी सुबह की गोद में!
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