भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
तुमने कहा
तुमने कहा
कि तुम
सूरज के पास रहते हुए भी
नहीं भूले
झोपड़ी का अँधेरा,
तुमने कहा-
कि तुम
आसमान से बातें करते हुए भी
दुलराते रहे
धरती की गोद से झाँकते
नन्हें विरवे को,
और
तुमने ही कहा
कि तुम
हवा के साथ बहते हुए भी
करते रहे
अकेले दिये के-
थरथराते अस्तित्व की रक्षा।
वैसे,
मैं भी हो सकता हूं
किसी नदी का
ख़ामोश पुल,
रह सकता हूँ
भीड़ के साथ होते हुए भी
निताँत अकेला
लेकिन-
अगर, तुम कहो तो-
ले सकता हूँ
अपने
आखिरी बयान
तुम्हारे लिए,
और तब
क्या तुम-
पहले की तरह,
हाथों हाथ लोगे मुझे ?
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