भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
चीख़
चीखो!
पहले से भी ज्यादा
तेज आवाज़ में।
तुम्हें
चीखना भी चाहिए
क्योंकि
तुम्हारी आवाज़
पहले की तरह
भूख और गरीबी का
कुछ नहीं बिगाड़ सकती
न ही, भेद सकती है
छाती
अंधी व्यवस्था की।
हां,
तुम्हारी चीख़
कुछ देर के लिए
कम कर सकती है
तुम्हारे-
घावों की तपकन।
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