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पीढ़ी का दर्द

सुबोध श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9597
आईएसबीएन :9781613015865

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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।


ओ आदमी !


तुम,
बहुत टीसते हो मुझे
ओ चीथड़ों से ढके
गंदे से आदमी !

मैं
जब भी महसूसता हूँ
तुम्हें,
एहसास होता है कि
भीड़ में खोए शहर में-
आधुनिक सभ्यता के बीच
दम तोड़ती मर्यादाओं में
बाकी हैं कुछ सांसें।

खत्म नहीं हुई अब भी
याद रखने की परम्परा-
अस्तित्व के लिए जूझता
पूर्वजों का सत्य,
आँखों के पनीलेपन
और
खुद के ज़िन्दा होने के मायने।

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