भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
बदला मौसम
चिड़िया
अब नहीं लाती दाना
घोंसले में छिपे
बच्चों के लिए
जो, अब लगने लगे हैं
उसे पराये से।
वह सोचती है कि
बच्चे भी सोचते हैं
ऐसा ही कुछ।
शायद इसीलिए-
वे अब, खुद चुगते हैं दाना
कुछ नहीं कहते उससे
और चिड़िया -
कोशिश नहीं करती
दाना उठाने की,
जो बच्चों की चोंच से
गिर जाता है बार-बार
घोंसले में
क्योंकि परायों के लिए
कोई कुछ नहीं करता।
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