भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
बापू से
तुम,
सिर्फ एक दिन जीने के लिए
क्यों जिए बापू
और क्यों शहीद हुए ?
तुम्हारे ही देश में
जहाँ देखा था
तुमने,
रामराज्य का स्वप्न,
तुम्हारी सन्तानें
राम को-
देखना भी नहीं चाहतीं।
तुम,
अहिंसा के पुजारी थे
और, इसी रास्ते पे
चलने को कह गए थे
मगर
तुम्हारी ही प्रतिमूर्तियाँ
तुम्हारी शांत लाठी
भूखों-नंगों के
सब्र पे बरस रही हैं
अथक,
जबकि-
तुम तो शायद थक भी जाते होगे !
जब तुम्हारी संतानें
तुम्हारी ही समाधि पर
गोलियाँ बरसा रही हैं
तो उस दिन-
तुम
असहाय से
'राम' कहकर क्यों चुप हो गए थे बापू (?)
बस,
एक रोज जिन्दा रहने को
क्यों तुम
उम्र भर जिए बापू ?
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