भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
त्रासदी
इसमें
तुम्हारा दोष कतई नहीं है
कि तुम
आदमियत से-
हैवानियत की ओर मुड़ते
अपने कदमों को-
ख़ामोशी से ताक रहे हो।
क्योंकि-
यह नजरिया तो
तुम्हें
मिला है विरासत में
और
अपनी संस्कृति में
बँधे रहना ही
तुम्हारी पहचान है।
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