भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
कर्फ्यू
शहर की
कर्फ्यूग्रस्त सड़क पे-
दौड़ते दिखते हैं
अधनंगे, गंदे बच्चे
दूर, बूटों की आवाज़ से
सहमते हैं
भूखे बच्चे,
उल्टे पाँव घर लौट कर
देहरी पे-
सहमी-ख़ामोश बैठी
मां का
आँचल खींचते हैं,
पास बैठा बाप
जैसे, उनका कोई नहीं।
तोतली जुबान से
पूछते हैं-
'अम्मा, बप्पा अब क्यों नहीं
लेने जाते रोटी?'
गली के उस छोर से
उठता शोर
एक बार फिर
अम्मा, बप्पा और बच्चे का
मरियल स्वर
खा जाता है।
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