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पवहारी बाबा

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9594
आईएसबीएन :9781613013076

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यह कोई भी नहीं जानता था कि वे इतने लम्बे समय तक वहाँ क्या खाकर रहते हैं; इसीलिए लोग उन्हें 'पव-आहारी' (पवहारी) अर्थात् वायु-भक्षण करनेवाले बाबा कहने लगे।


ऐसा करते-करते उनका स्वयं का आहार दिनोंदिन कम होने लगा। हमने सुना है कि अन्त में वे दिन भर में केवल एक मुट्ठी नीम के कडवे पत्ते अथवा कुछ लाल मिर्च ही खाकर रह जाया करते थे। इसके बाद उन्होंने रात को गंगाजी के उस पार जंगल में जाना छोड़ दिया और वे अपना अधिकाधिक समय उस गुफा में ही बिताने लगे। हमने सुना है कि उस गुफा में वे कई-कई दिनों तथा महीनों तक ध्यानमग्न रहा करते और फिर निकलते। यह कोई भी नहीं जानता था कि वे इतने लम्बे समय तक वहाँ क्या खाकर रहते हैं; इसीलिए लोग उन्हें 'पव-आहारी' (पवहारी) अर्थात् वायु-भक्षण करनेवाले बाबा कहने लगे।

फिर उन्होंने अपने जीवनभर यह स्थान नहीं छोड़ा। एक समय वे अपनी गुफा में इतने अधिक समय तक रहे कि लोगों ने यह निश्चय कर लिया कि वे अब मर गये! किन्तु बहुत समय के बाद वे फिर बाहर निकले और उन्होंने सैकड़ों साधुओं को भण्डारा दिया।

जब वे ध्यानमग्न नहीं रहते थे, तब अपनी गुफा के द्वार पर स्थित एक कमरे में बैठकर, दर्शन के निमित्त आये हुए लोगों से बातचीत करते थे। अब उनकी कीर्ति फैलने लगी। गाजीपुर-निवासी अफीम-विभाग के अधिकारी रायबहादुर गगनचन्द्र के द्वारा - जो अपने उदात्त आचरण तथा धर्मपरायणता के कारण लोकप्रिय थे - हमें इन सन्त से परिचित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

भारत के अन्य अनेक सन्तों के सदृश पवहारी बाबा के जीवन में भी कोई विशेष बाह्य क्रियाशीलता नहीं दीख पड़ती थी। 'शब्द द्वारा नहीं, बल्कि जीवन द्वारा ही शिक्षा देनी चाहिए, और जो व्यक्ति सत्य धारण करने के योग्य हैं, उन्हीं के जीवन में वह प्रतिफलित होता है।' - उनका जीवन इसी भारतीय आदर्श का एक और उदाहरण था। इस श्रेणी के सन्त, जो कुछ वे जानते हैं, उसका प्रचार करने में पूर्णतया उदासीन रहते हैं; क्योंकि उनकी यह दृढ़ धारणा होती है कि शब्द द्वारा नहीं, वरन् केवल भीतर की साधना द्वारा ही सत्य की प्राप्ति हो सकती है। उनके निकट धर्म सामाजिक कर्तव्यों की प्रेरकशक्ति नहीं है, वरन् इसी जीवन में सत्य का प्रखर अनुसन्धान एवं सत्य की उपलब्धि है। वे काल के किसी एक क्षण में अन्यान्य क्षणों की अपेक्षा अधिक क्षमता स्वीकार नहीं करते। अतएव अनन्त काल के प्रत्येक क्षण के एक समान होने के कारण वे इस बात पर जोर देते हैं कि मृत्यु की बाट न जोहकर इसी लोक में तथा प्रस्तुत क्षण में ही आध्यात्मिक सत्यों का साक्षात्कार कर लेना चाहिए।

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