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पवहारी बाबा

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9594
आईएसबीएन :9781613013076

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यह कोई भी नहीं जानता था कि वे इतने लम्बे समय तक वहाँ क्या खाकर रहते हैं; इसीलिए लोग उन्हें 'पव-आहारी' (पवहारी) अर्थात् वायु-भक्षण करनेवाले बाबा कहने लगे।


लेखक ने एक समय इन सन्त से पूछा था कि संसार की सहायता करने के लिए वे अपनी गुफा से बाहर क्यों नहीं आते। पहले तो उन्होंने अपनी स्वाभाविक विनयशीलता तथा विनोदप्रियता के अनुरूप निम्नलिखित स्पष्ट उत्तर दिया--

एक दुष्ट मनुष्य कुछ दुष्कर्म करते समय पकड़ा गया और दण्ड के रूप में उसकी नाक काट ली गयी। अपना नकटा चेहरा दुनिया को दिखलाने में लज्जा का अनुभव करने के कारण वह अपने से खीझकर एक जंगल में भाग गया। वहां वह एक शेर की खाल बिछाकर बैठा रहता और जब देखता कि कोई आ रहा है, तो तुरन्त गम्भीर ध्यान का ढोंग करने लगता। ऐसा करने से वह लोगों को दूर तो न रख सका, उलटे झुण्ड में लोग इस अद्भुत महात्मा को देखने तथा उसकी पूजा करने के लिए आने लगे। उसने देखा कि यह अरण्यवास तो फिर उसके लिए जीवननिर्वाह का सरल साधन बन गया है। इस प्रकार कई वर्ष बीत गये। अन्त में उस स्थान के लोग इस मौनव्रतधारी ध्यानपरायण साधु के मुख से कुछ उपदेश सुनने के लिए लालायित हुए और एक नवयुवक उस 'साधु' के सम्प्रदाय में सम्मिलित होने के निमित्त दीक्षा लेने के लिए विशेष रूप से उत्सुक हो उठा। अन्त में ऐसी स्थिति पैदा हुई कि अधिक विलम्ब करने से साधु की प्रतिष्ठा भंग होने की आशंका हो गयी। तब तो एक दिन वह अपना मौन छोड़कर उस उत्साही युवक से बोला, 'बेटा, कल अपने साथ एक तेज धारवाला उस्तरा लेके आना।'

इस आशा से कि उसके जीवन की महान् आकांक्षा शीघ्र ही पूर्ण हो जाएगी, उस युवक को बड़ा आनन्द हुआ और दूसरे दिन सबेरा होते ही वह एक तेज छुरा लेकर साधु के पास जा पहुँचा। तब यह नकटा साधु उस युवक को जंगल में एक दूर निर्जन कोने में ले गया और एक ही आघात में उसकी नाक काट ली। फिर वह गम्भीर आवाज में बोला, 'बेटा, इस सम्प्रदाय में मेरी दीक्षा इसी प्रकार हुई थी और वही आज मैंने तुझे दी है। अवसर पाते ही तू भी तत्परता के साथ दूसरों को यही दीक्षा देते रहना!' लज्जा के कारण युवक अपनी इस अद्भुत दीक्षा का रहस्य किसी के पास प्रकट नहीं कर सका और वह अपने गुरु के आदेश का पालन पूर्ण रूप से करने लगा। इस प्रकार होते-होते देश में नकटे साधुओं का एक पूरा सम्प्रदाय बन गया! तुम्हारी क्या ऐसी इच्छा है कि मैं भी इसी प्रकार के एक और सम्प्रदाय की स्थापना करूँ?''

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