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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।

महर्षि मार्कण्डेय जी ने कहा-'जहाँ पति-पत्नी परस्पर झगड़ा करते हों, उस घरमें तुम दोनों निर्भय होकर घुस जाओ। जहाँ भगवान् की निन्दा होती हो, जप, होम आदि न होते हों, भगवान् के नाम नहीं लिये जाते हों, उस घरमें घुस जाओ। जो लोग बच्चोंको न देकर स्वयं खा लेते हों, उस घरमें तुम दोनों घुस जाओ। जिस घरमें काँटेदार, दूधवाले, पलाश के वृक्ष और निम्ब के वृक्ष हों, जिस घर में दोपहरिया, तगर, अपराजिता के फूल का पेड़ हो, वे घर तुम दोनों के रहने योग्य हैं, वहाँ अवश्य जाओ। जिस घर में केला, ताड़, तमाल, भल्लातक (भिलाव), इमली, कदम्ब, खैर के पेड़ हों, वहाँ तुम दरिद्राके साथ घुस जाया करो। जो स्नान आदि मंगल कृत्य न करते हों, दाँत-मुख साफ नहीं करते, गंदे कपड़े पहनते, संध्याकालमें सोते या खाते हों, जुआ खेलते हों, ब्राह्मणके धनका हरण करते हों, दूसरेकी स्त्रीसे सम्बन्ध रखते हों, हाथ-पैर न धोते हों, उन घरोंमें दरिद्रा के साथ तुम रहो।'

मार्कण्डेय ऋषि के चले जानेके बाद दुःसह ने अपनी पत्नी दरिद्रा से कहा-'ज्यैष्ठे! तुम इस पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ जाओ। मैं रसातल जाकर रहने के स्थान का पता लगाता हूँ।'

दरिद्रा ने पूछा-'नाथ! तब मैं खाऊँगी क्या? मुझे कौन भोजन देगा?'

दुःसह ने कहा-'प्रवेश के स्थान तो तुझे मालूम ही हो गये हैं, वहाँ घुसकर खा-पी लेना। हाँ यह याद रखना कि जो स्त्री पुष्प, धूप आदि से तुम्हारी पूजा करती हो, उसके घरमें मत घुसना।' इतना कहकर दुःसह रसातल में चले गये।

ज्येष्ठा वहीं बैठी हुई थी कि लक्ष्मीके साथ भगवान् विष्णु वहाँ आ गये। ज्येष्ठाने भगवान् विष्णुसे कहा-'मेरे पति रसातल चले गये हैं, मैं अब अनाथ हो गयी हूँ, मेरी जीविकाका प्रबन्ध कर दीजिये।'

भगवान् विष्णुने कहा-'ज्येष्ठे! जो माता पार्वती, शंकर और मेरे भक्तों की निन्दा करते हैं, उनके सारे धन पर तुम्हारा ही अधिकार है। उनका तुम अच्छी तरह उपभोग करो। जो लोग भगवान् शंकर की निन्दा कर मेरी पूजा करते हैं, ऐसे मेरे भक्त अभागे होते हैं, उनके धन पर भी तुम्हारा ही अधिकार है।' 

इस प्रकार ज्येष्ठाको आश्वासन देकर भगवान् विष्णु लक्ष्मी-सहित अपने निवासस्थान वैकुण्ठको चले गये।

(लिंगपुराण)


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