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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


दरिद्रता कहां-कहां रहती है?


समुद्र-मन्थनके समय हलाहलके निकलनेके पश्चात् दरिद्रता की, तत्पश्चात् लक्ष्मीजीकी उत्पत्ति हुई। इसलिये दरिद्रा को ज्येष्ठा भी कहते हैं। ज्येष्ठाका विवाह दुःसह ब्राह्मण के साथ हुआ। विवाहके बाद दुःसह मुनि अपनी पत्नी के साथ विचरण करने लगे। जिस देश में भगवान् का उद्घोष होता, होम होता, वेदपाठ होता, भस्म लगाये लोग होते - वहाँ से ज्येष्ठा दोनों कान बंद कर दूर भाग जाती। यह देखकर दुःसह मुनि उद्विग्न हो गये। उन दिनों सब जगह धर्म की चर्चा और पुण्य कृत्य हुआ ही करते थे। अतः दरिद्रा भागते-भागते थक गयी, तब उसे दुःसह मुनि निर्जन वनमें ले गये। ज्येष्ठा डर रही थी कि मेरे पति मुझे छोड़कर किसी अन्य कन्या से विवाह न कर लें। दुःसह मुनि ने यह प्रतिज्ञा कर कि 'मैं किसी अन्य कन्या से विवाह नहीं करूँगा' पत्नीको आश्वस्त कर दिया।

आगे बढ़नेपर दुःसह मुनि ने महर्षि मार्कण्डेय को आते हुए देखा। उन्होंने महर्षिको साष्टांग प्रणाम किया और पूछा कि 'इस भार्या के साथ मैं कहाँ रहूँ और कहाँ न रहूँ?'

मार्कण्डेय मुनिने पहले उन स्थानों को बताना आरम्भ किया, जहाँ दरिद्राको प्रवेश नहीं करना चाहिये- 'जहाँ रुद्रके भक्त हों और भस्म लगानेवाले लोग हों, वहाँ तुमलोग प्रवेश न करना। जहाँ नारायण, गोविन्द, शंकर, महादेव आदि भगवान् के नाम का कीर्तन होता हो, वहाँ तुम दोनों को नहीं जाना चाहिये; क्योंकि आग उगलता हुआ विष्णु का चक्र उन लोगों के अशुभ को नाश करता रहता है। जिस घर में स्वाहा, वषट्कार और वेद का घोष होता हो, जहांके लोग नित्यकर्म में लगे हुए भगवान् की पूजा में लगे हुए हों, उस घर को दूर से ही त्याग देना। जिस घर में भगवान् की मूर्ति हो, गायें हों, भक्त हों, उस घर में भी तुम दोनों मत घुसना।'

तब दुःसह मुनि ने पूछा-'महर्षे! अब आप हमें यह बतायें कि हमारे प्रवेशके स्थान कौन-कौन-से हैं?'

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