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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।

तब पार्वतीका वचन सुनकर शनैश्चर स्वयं मन-ही-मन यों विचार करने लगे-'अहो! क्या मैं इस पार्वतीनन्दनपर दृष्टिपात करूँ अथवा न करूँ? क्योंकि यदि मैं बालकको देख लूँगा तो निश्रय ही उसका अनिष्ट हो जायगा।' इस प्रकार कहकर धर्मात्मा शनैश्चरने धर्मको साक्षी बनाकर बालकको तो देखनेका विचार किया, परंतु बालककी माताको नहीं। शनैश्चरका मन तो पहलेसे ही खिन्न था। उनके कण्ठ, ओष्ठ और तालु भी सूख गये थे, फिर भी उन्होंने अपने बायें नेत्रके कोनेसे शिशुके मुखकी ओर निहारा। शनिकी दृष्टि पड़ते ही शिशुका मस्तक धड़से अलग हो गया। तब शनैश्चरने अपनी आँख फेर ली और फिर वे नीचे मुख करके खड़े हो गये। इसके पश्चात् उस बालकका खूनसे लथपथ हुआ सारा शरीर तो पार्वतीकी गोदमें पड़ा रह गया। परंतु मस्तक अपने अभीष्ट गोलोकमें जाकर श्रीकृष्णमें प्रविष्ट हो गया। यह देखकर पार्वतीदेवी बालकको छातीसे चिपटाकर फूट-फूटकर विलाप करने लगीं और उन्मत्तकी भांति भूमिपर गिरकर मूर्च्छित हो गयीं। तब वहाँ उपस्थित सभी देवता, देवियाँ पर्वत, गन्धर्व, शिव तथा कैलासवासी जन यह दृश्य देखकर आश्चर्यचकित हो गये। उस समय उनकी दशा चित्रलिखित पुत्तलिकाके समान जड़ हो गयी।

इस प्रकार उन सबको मूर्च्छित देखकर श्रीहरि गरुड़पर सवार हुए और उत्तरदिशामे स्थित पुष्पभद्राके निकट गये। वहाँ उन्होंने पुष्पभद्रा नदीके तटपर वनमें स्थित एक गजेन्द्रको देखा, जो निद्राके वशीभूत हो बच्चोंसे घिरकर हथिनीके साथ सो रहा था। उसका सिर उत्तर दिशाकी ओर था, मन परमानन्दसे पूर्ण था और वह परिश्रमसे थका हुआ था। फिर तो श्रीहरिने शीघ्र ही सुदर्शनचक्रसे उसका सिर काट लिया और रक्तसे भीगे हुए उस मनोहर मस्तकको बड़े हर्षके साथ गरुड़पर रख लिया। गजके कटे हुए अंगके गिरनेसे हथिनीकी नींद टूट गयी। तब अमंगल शब्द करती हुई उसने अपने शावकोंको भी जगाया। फिर वह शोकसे विह्वल हो शावकोंके साथ विलख-विलखकर चीत्कार करने लगी। तत्पश्रात् उसने भगवान् विष्णुका स्तवन किया। उसकी स्तुतिसे प्रसन्न होकर भगवान् ने उसे वर दिया और दूसरे गजका मस्तक काटकर इसके धड़से जोड़ दिया। फिर उन ब्रह्मवेत्ताने ब्रह्मज्ञानसे उसे जीवित कर दिया और उस गजेन्द्रके सर्वांगमें अपने चरणकमलका स्पर्श कराते हुए कहा-'गज! तू अपने कुटुम्बके साथ एक कल्पपर्यन्त जीवित रह।' इस प्रकार कहकर मनके समान वेगशाली भगवान् कैलासपर जा पहुँचे। वहाँ पार्वतीके वासस्थानपर आकर उन्होंने उस बालकको अपनी छातीसे चिपटा लिया और उस हाथीके मस्तकको सुन्दर बनाकर बालकके धड़से जोड़ दिया। फिर ब्रह्मस्वरूप भगवान् ने ब्रह्मज्ञानसे हुंकारोच्चारण किया और खेल-खेलमें ही उसे जीवित कर दिया। पुनः श्रीकृष्णने पार्वतीको सचेत करके उस शिशुको उनकी गोदमें रख दिया और आध्यात्मिक ज्ञानद्वारा पार्वतीको समझाना आरम्भ किया। श्रीविष्णुका कथन सुनकर पार्वतीका मन संतुष्ट हो गया। तब वे उन गदाधर भगवान् को प्रणाम करके शिशुको दूध पिलाने लगीं। तदनन्तर प्रसन्न हुई पार्वतीने शंकरजी की प्रेरणासे अज्जलि बाँधकर भक्तिपूर्वक उन कमलापति भगवान् विष्णुकी स्तुति की।

(ब्रह्मवैवर्तपुराण)


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