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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


राजा विदूरथ की कथा


विख्यातकीर्ति राजा विदूरथके सुनीति और सुमति नामक दो पुत्र थे। एक समय विदूरथ शिकारके लिये वनमें गये, वहाँ ऊपर निकले हुए पृथ्वीके मुखके समान एक विशाल गड्ढेको देखकर वे सोचने लगे कि यह भीषण गर्त क्या है? यह भूमि-विवर तो नहीँ हो सकता? वे इस प्रकार चिन्ता कर ही रहे थे कि उस निर्जन वनमें उन्होंने सुव्रत नामक एक तपस्वी ब्राह्मणको समीप आते हुए देखा। आश्चर्यचकित राजाने उस तपस्वीको भूमिके उस भयंकर गड्ढेको दिखाकर पूछा कि 'यह क्या है?'

ऋषिने कहा-'महीपाल! क्या आप इसे नहीं जानते? रसातलमें अतिशय बलशाली उग्र नामका दानव निवास करता है। वह पृथ्वीको विदीर्ण करता है, अतः उसे कुजृम्भ कहा जाता है। पूर्वकालमें विश्वकर्माने सुनन्द नामक जिस मूसलका निर्माण किया था, उसे इस दुष्टने चुरा लिया है। यह उसी मूसलसे रणमें शत्रुओंको मारता है। पातालमें निवास करता हुआ वह असुर उस मूसलसे पृथ्वीको विदीर्ण कर अन्य सभी असुरोंके लिये द्वारोंका निर्माण करता है। उसने ही उस मूसलरूपी शस्त्रसे पृथ्वीको इस स्थानपर विदीर्ण किया है। उसपर विजय पाये बिना आप कैसे पृथ्वीका भोग करेंगे? मूसलरूपी आयुधधारी महाबली उग्र यज्ञोंका विध्वंस, देवोंको पीड़ित और दैत्योंको संतुष्ट करता है। यदि आप पातालमें रहनेवाले उस शत्रुको मारेंगे तभी सम्राट् बन सकेंगे। उस मूसलको लोग सौनन्द कहते हैं। मनीषिगण उस मूसलके बल और अबलके प्रसंगमें कहते हैं कि उस मूसलको जिस दिन नारी छू लेती है, उसी क्षण वह शक्तिहीन हो जाता है और दूसरे दिन शक्तिशाली हो जाता है। आपके नगरके समीपमें ही उसने पृथ्वीमें छिद्र कर दिया है, फिर आप कैसे निश्चिन्त रहते हैं?' ऐसा कहकर ऋषिके प्रस्थान करनेपर राजा अपने नगरमें लौटकर उस विषयपर मन्त्रियोंके साथ विचार करने लगे।

मूसलके प्रभाव एवं उसकी शक्तिहीनता आदिके विषयमें उन्होंने जो कुछ सुना था, वह सब मन्त्रियोंके सम्मुख व्यक्त किया। मन्त्रियोंसे परामर्श करते समय राजाके समीपमें बैठी हुई उनकी पुत्री मुदावतीने भी सभी बातें सुनीं।

इस घटनाके कुछ दिनोंके बाद अपनी सखियोंसे घिरी हुई मुदावती जब उपवनमें थी, तब कुजृम्भ दैत्यने उस वयस्क कन्याका अपहरण कर लिया। यह सुनकर राजाके नेत्र क्रोधसे लाल हो गये। उन्होंने अपने दोनों कुमारोंसे कहा कि 'तुमलोग शीघ्र जाओ और निर्विन्ध्या नदीके तट-प्रान्तमें जो गड्ढा है, उससे रसातलमें जाकर मुदावतीका अपहरण करनेवालेका विनाश करो।'

इसके बाद परम कुद्ध दोनों राजकुमारोंने उस गड्ढेको प्राप्त कर पैरके चिह्नोंका अनुसरण करते हुए सेनाओंके साथ वहाँ पहुँचकर कुजृम्भके साथ युद्ध आरम्भ कर दिया। मायाके बलसे बलशाली दैत्योंने सारी सेनाको मारकर उन दोनों राजकुमारोंको भी बंदी बना लिया। पुत्रोंके बंदी होनेका समाचार सुनकर राजाको अतिशय दुःख हुआ। उन्होंने सैनिकोंको बुलाकर कहा-'जो उस दैत्यको मारकर मेरी कन्या और पुत्रोंको मुक्त करायेगा, उसीको मैं अपनी विशालनयना कन्या मुदावतीको दे दूँगा।'

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