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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


मौत की भी मौत


जो ईश्वर का भक्त होता है, उसका स्वामी ईश्वर होता है। उसपर मौतका अधिकार नहीं होता। अनधिकार चेष्टा करनेसे मौतकी भी मौत हो जाती है।

गोदावरीके तटपर 'श्वेत' नामक एक ब्राह्मण रहते थे। उनका सब समय निरन्तर साम्य सदाशिवकी पूजामें व्यतीत होता था। वे अतिथियोंको शिव समझकर उनका भलीभांति आदर-सत्कार किया करते थे। उनका शेष समय भगवान् के ध्यानमें बीतता था। उनकी आयु पूरी हो चुकी थी, किंतु उन्हें इस बातका ज्ञान न था। उन्हें न रोग था न शोक, इसलिये आयु पूरी हो चुकी है, इसका आभास नहीं हुआ। उनका सारा ध्यान शिवमें केन्द्रित था। यमदूत समयसे उन्हें लेने आये, परंतु वे उनके घरमें प्रवेश नहीं कर पाते थे। चित्रगुप्तने मृत्युसे पूछा-'मृत्युदेव! श्वेत अबतक यहाँ क्यों नहीं आया? तुम्हारे दूत भी नहीं आये?' यह सुनकर मृत्युको श्वेतपर बहुत क्रोध आया। वे स्वयं उन्हें लेने दौड़े। गृहके द्वारपर यमदूत भयसे काँपते दिखायी पड़े। उन्होंने मृत्युसे कहा-'नाथ! हम क्या करें? श्वेत तो शिवके द्वारा सुरक्षित है। उसे तो हम देख भी नहीं पा रहे हैं उसके पास पहुँचना तो अत्यन्त कठिन है।'

दूतोंकी बात सुनकर मौतका क्रोध और भभक उठा। वे झट ब्राह्मणके घरमें प्रवेश कर गये। ब्राह्मण देवताको यह पता न था कि कहाँ क्या हो रहा है? मृत्युदेवको झपटते देखकर भैरव बाबाने कहा-'मृत्युदेव! आप लौट जाइये।' किंतु मृत्युदेवने उनकी बातको अनसुनी कर श्वेतपर फंदा डाल दिया। भक्तपर

मृत्युका यह आक्रमण भैरव बाबाको सहन न हुआ। उन्होंने मृत्युपर डंडेसे प्रहार किया। मृत्युदेव वहीं ठंडे हो गये। यमदूत भागकर यमराजके पास पहुँचे। वे डरके मारे थर-थर काँप रहे थे। मृत्युकी मृत्यु सुनकर यमराजको बड़ा क्रोध हो आया। उन्होंने हाथमें यमदण्ड ले लिया और अपनी सेनाके साथ श्वेतके पास पहुँच गये।

वहाँ भगवान् शंकरके पार्षद पहलेसे ही खड़े थे। सेनापति कार्तिकेयके शक्ति-अस्त्रसे सेनासहित यमराजकी भी मृत्यु हो गयी। यह अपूर्व समाचार सुनकर भगवान् सूर्य देवताओंके साथ ब्रह्माके पास पहुँचे और ब्रह्मा सबके साथ घटनास्थलपर आये। देवताओंने भगवान् शंकरकी स्तुति की और कहा-'भगवन्! यमराज सूर्यके पुत्र हैं। ये लोकपाल हैं। इन्होंने कोई अपराध या पाप नहीं किया है, अतः इनका वध नहीं होना चाहिये। इन्हें जीवित कर दें, नहीं तो अव्यवस्था हो जायगी। भगवन्! आपसे की हुई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं होती।'

भगवान् आशुतोषने कहा-'मैं भी व्यवस्थाके पक्षमें हूँ। वेदकी एक व्यवस्था है कि जो मेरे अथवा भगवान् विष्णुके भक्त हैं, उनके स्वामी स्वयं हमलोग होते हैं। मृत्युका उनपर कोई अधिकार नहीं होता। यमराजके लिये यह व्यवस्था की गयी है कि वे भक्तोंको अनुचरोंके साथ प्रणाम करें।'

इसके बाद भगवान् आशुतोषने नन्दीके द्वारा गौतमी गंगा (गोदावरी)-का जल मरे हुए लोगोंपर छिड़कवाया। तत्क्षण सब-के-सब स्वस्थ होकर उठ खड़े हुए।

(ब्रह्मपुराण)


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