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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।


अद्भुत अतिथि-सत्कार


एक दिन एक व्याध भयानक वनमें शिकार करते समय पत्थर-पानी-हवाकी चोटसे अत्यन्त दुर्गतिमें पड़ गया। कुछ दूर आगे बढ़नेपर उसे एक वृक्ष दीखा। उसकी छायामें जानेपर उसे कुछ आराम मिला। तब उसे स्त्री-बच्चोंकी चिन्ता सताने लगी। इधर सूर्यास्त भी हो गया था। ठंडके कारण उसके हाथ-पैरमें कम्पन हो रहा था और दाँत किटकिटा रहे थे।

उसी वृक्षपर एक कपोत अपनी पत्नीकी चिन्तामें घुल रहा था। उसकी स्त्री पतिव्रता थी और अभी चारा चुगकर आयी नहीं थी। वस्तुतः वह इसी व्याधके पिंजड़ेमें पड़ी थी। कपोत उसके न लौटनेपर विलाप कर रहा था। पतिका विलाप सुनकर कपोती बोली-‘नाथ! मैं पिंजड़ेमें बँधी हुई हूँ। कृपया आप मेरी चिन्ता न कर अतिथि-धर्मका पालन करें। यह व्याध भूख और ठंडसे मरा जा रहा है। सायंकाल अपने आवासपर आ भी गया है। यह आर्त अतिथि है। यद्यपि यह शत्रु है, फिर भी अतिथि है। अतः इसका सत्कार करें। इसने जो मुझे पकड़ रखा है, वह मेरे किसी कर्मका फल है। इसके लिये व्याधको दोष देना व्यर्थ है। आप अपनी धर्ममयी बुद्धिको स्थिर करें। थके हुए अतिथिके रूपमें सारे देवता और पितर पधारते हैं। अतिथि-सत्कारसे सबका सत्कार हो जाता है। यदि अतिथि निराश होकर लौट जाता है तो सभी देवता और पितर भी लौट जाते हैं। आप इस बातपर ध्यान न दें कि इस व्याधने आपकी पत्नीको पकड़ रखा है; क्योंकि अपकार करनेवालेके साथ जो अच्छा बर्ताव करता है, वही पुण्यका भागी माना जाता है।‘

कपोत अपनी पत्नीके धार्मिक प्रवचनसे बहुत प्रभावित हुआ। उसमें धर्ममयी बुद्धि जाग पड़ी। उसने व्याधके सामने उपस्थित होकर कहा-‘तुम मेरे घरपर आये हुए अतिथि हो। मेरा कर्तव्य है कि मैं प्राण देकर भी तुम्हारी सेवा करूँ। इस समय तुम भूख और ठंडसे मृतप्राय हो रहे हो। थोड़ी देर प्रतीक्षा करो।‘ इतना कहकर वह उड़ा और कहींसे जलती हुई एक लकड़ी ले आया। उसे लकड़ीके ढेरपर रख दिया। धीरे-धीरे आग जल उठी। उससे व्याधकी जकड़न दूर हो गयी। तब कपोतने व्याधकी परिक्रमा कर अपनेको अग्रिमें झोंक दिया। व्याध उसे अग्निमें प्रवेश करते देख घबरा गया और अपनेको धिक्कारने लगा। फिर उसने कपोती तथा अन्य पक्षियोंको पिंजड़ेसे निकालकर छोड़ दिया। कपोतीने भी अपने पतिके पथका अनुसरण किया। तत्पश्चात् कपोत और कपोती देवताके समान दिव्य शरीर धारणकर तथा विमानपर चढ़कर स्वर्गलोककी ओर प्रस्थित हुए। उन्हें जाते देखकर व्याधने उनकी शरण ली और अपने उद्धारके लिये उपाय पूछा। इसपर कपोतने उसे गोदावरीमें स्नान करनेकी बात बतायी। एक मासतक गोदावरी-स्नान करके व्याध भी स्वर्गलोकको चला गया। गोदावरीका वह स्थान आज भी कपोत-तीर्थके नामसे विख्यात है।

(ब्रह्मपुराण)


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