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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।

इस तरह सोचते हुए दोनोंकी रात बीत गयी। प्रातःकाल उठकर वे दोनों परस्पर मिलने चले। वे अभी सामने आये ही थे कि वज्रपात हुआ और दोनोंकी तत्क्षण मृत्यु हो गयी। तत्काल वहाँ तीन यमदूत और दो भगवान् विष्णुके दूत आ उपस्थित हुए। यमदूतोंने तो वृत्तको पकड़ा और विष्णुदूतोंने सुवृत्तको साथ लिया। ज्यों ही वे लोग चलनेके लिये तैयार हुए त्यों ही सुवृत घबराया-सा बोल उठा-'अरे! आपलोग यह कैसा अन्याय कर रहे हैं। कलके पूर्व तो हम दोनों समान थे। पर आजकी रात मैं वेश्यालयमें रहा हूँ और वह वृत्त, मेरा छोटा भाई माधवजीके मन्दिरमें रहकर परम पुण्य अर्जन कर चुका है। अतएव भगवान् के परमधाममें वही जानेका अधिकारी हो सकता है।'

अब भगवान् के दोनों पार्षद ठहाका मारकर हँस पड़े। वे बोले-'हमलोग भूल या अन्याय नहीं करते। देखो, धर्मका रहस्य बड़ा सूक्ष्म तथा विचित्र है। सभी धर्मकर्मोंमें मनःशुद्धि ही मूल कारण है। मनसे भी किया गया पाप दुःखद होता है और मनसे भी चिन्तित धर्म सुखद होता है। आज तुम रातभर शुभचिन्तनमें लगे रहे हो, अतएव तुम्हें भगवद्धामकी प्राप्ति हुई। इसके विपरीत वह आजकी सारी रात अशुभ-चिन्तनमें ही रहा है, अतएव वह नरक जा रहा है। इसलिये सदा धर्मका ही चिन्तन और मन लगाकर धर्मानुष्ठान करना चाहिये।'

वस्तुतः जहाँ मन है वहीं मनुष्य है। मन वेश्यालयमें हो तो मन्दिरमे रहकर भी मनुष्य वेश्यालयमें है और मन भगवान्में है तो वह चाहे कहीं भी हो, भगवान्में ही है।

सुवृत्तने कहा-'पर जो हो, इस भाईके बिना मेरी भगवद्धाममें जानेकी इच्छा नहीं होती। अन्तः आपलोग कृपा करके इसे भी यमपाशसे मुक्त कर दें।'

विष्णुदूत बोले-'सुवृत्त! यदि तुम्हें उसपर दया है तो तुम अपने गतजन्मके मानसिक माघस्नान का संकल्पित जो पुण्य बच रहा है, उसे वृत्तको दे दो तो यह भी तुम्हारे साथ ही विष्णुलोकको चल सकेगा। सुवृत्तने तत्काल वैसा ही किया और फलतः वृत्त भी अपने भाईके साथ ही हरिधामको चला गया।              

(वायुपुराण)


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