उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘कल मैंने अपनी पत्नी से किसी पण्डित सुरेश्वर के पुत्र अमृतलाल के अपने स्कवाड्रन में पायलट के रूप में आने की बात कही तो वह कहने लगी कि एक अमृतलाल को वह भी जानती है, परन्तु पता चला था कि उसका तो देहान्त हो चुका है।’’
अमृतलाल ने गम्भीर भाव में पूछ लिया, ‘‘कौन है वह सुरेश्वर पण्डित?’’
‘‘एक हैं जो किसी समय क्रांन्तिकारी भी रहे हैं और अब बिलासपुर में एक ‘ऑरचर्ड’ रखते हैं। अच्छे-खासे धनवान व्यक्ति है।
‘‘अमृत उनका इकलौता बेटा था। सुना है कि वह किसी स्त्री के पीछे कश्मीर श्रीनगर में गया था और वहाँ किसी प्रकार के झगड़े में मारा गया था।’’
अमृतलाल ने यह कह दिया, ‘‘मैं उस अमृत को जानता नहीं।’’
परन्तु अमृत के पीत मुख से कुलवन्त समझ गया था कि वह झूठ बोल रहा है। इस पर उसने पूछ लिया, ‘‘तुम विवाहित हो?’’
‘‘जी नहीं।’’
‘‘विवाह नहीं करोगे?’’
‘‘चित्त नहीं करता। मैं समझता हूँ कि एक हवाई जहाज के पायलट को सेवा-मुक्त होने पर ही विवाह करना चाहिये।’’
कुलवन्त ने एक योजना मन में बनायी और कहा, ‘‘भाई, कुछ हो। तुम मेरी ससुराल के गाँव के तो हो ही। इस नाते साले लगते हो। एक दिन घर पर तुम्हें चाय के लिए नियन्त्रण देता हूँ।’’
‘‘आप कहाँ रहते हैं?’’
‘‘मेरी बड़ी साली दिल्ली करोलबाग के एक गर्ल्स स्कूल में प्रधानाचार्या है। उनके साथ मिलकर मैंने एक बड़ा-सा मकान ले रखा है। वह नीचे की मंजिल पर रहती हैं और मैं ऊपर की मंजिल पर रहता हूँ। मकान उनके स्कूल के समीप ही नाईवाड़ा में है।
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