उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘मैं तुम्हें अपने स्कूटर पर ले जाऊँगा और फिर तुम्हें यहाँ छोड़ भी जाऊँगा।’’
अमृत इस निमन्त्रण पर चंचलता अनुभव करने लगा। उसने कह दिया, ‘‘मुझे आपकी पत्नी से परिचय प्राप्त कर बहुत प्रसन्नता होगी। क्या नाम है उनका?’’
‘‘गरिमा देवी।’’
‘‘ठीक है। और उनकी बहन के बाल-बच्चे भी हैं क्या?’’
‘‘नहीं। वह विधवा है। सुना है कि वह अपने पति से लड़ पड़ी थी और उस लड़ाई की अवस्था में ही उसके पति का देहान्त हो गया था।’’
‘‘क्या काम करता था वह? मेरा मतलब है कि आपकी साली का पति?’’
‘‘यह सब घटना मेरे विवाह से पहले की है। मैं पूर्ण वृत्तान्त नहीं जानता। अब वह अपने स्कूल के काम में व्यस्त रहती है और कभी उनके पूर्व-जीवन के विषय में पूछने का अवसर नहीं मिला।’’
‘‘तो क्या अब मैं जा सकता हूँ?’’एकाएक अमृत ने बात समाप्त करते हुए कह दिया।
‘‘हाँ। यदि आगामी रविवार चाय पर बुलाऊँ तो ठीक रहेगा क्या?’’
‘‘मैं यहाँ सर्वथा एक नवीन व्यक्ति हूँ। अभी साथियों से भी मित्रता नहीं हुई समझता। परिचय मात्र ही हुआ है। इस कारण मैं तो अभी खाली ही हूँ।’’
‘‘तो ठीक है। आज मंगलवार है। इन तीन-चार दिनों में मुझे एक विशेष काम है। रविवार को ठीक रहेगा। मैं तुम्हें लेने के लिये तीन बजे यहाँ पहुँचूँगा और फिर साढ़े-पाँच बजे तक यहाँ छोड़ जाऊँगा।’’
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