ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
94. बादल हो बरसात न हो तो
बादल हो बरसात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।।
घंटों बैठें और करें हम
इधर-उधर की बातें।
दुनिया से क्या लेना पर हों
दुनिया भर की बातें।
कोई मन की बात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।।
तुझे देखकर कितने सपने
देखें मेरी आँखें।
पर तेरी आँखें भी मेरी
इन नजरों में झाँकें।
तेरा कोई हाथ न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।।
कोई किसी खेल को खेले
तो मन से ही खेले।
पर मन कब तक लगा रहेगा
खेले अगर अकेले।
कभी जीत या मात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।।
मेरा हर दिन न्यौछावर है
तेरे हर लमहे पर।
पर तेरा भी कोई लमहा
मुझ पर हो न्यौछावर।
तेरी यह सौगात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।।
घंटों बैठें और करें हम
इधर-उधर की बातें।
दुनिया से क्या लेना पर हों
दुनिया भर की बातें।
कोई मन की बात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।।
तुझे देखकर कितने सपने
देखें मेरी आँखें।
पर तेरी आँखें भी मेरी
इन नजरों में झाँकें।
तेरा कोई हाथ न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।।
कोई किसी खेल को खेले
तो मन से ही खेले।
पर मन कब तक लगा रहेगा
खेले अगर अकेले।
कभी जीत या मात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।।
मेरा हर दिन न्यौछावर है
तेरे हर लमहे पर।
पर तेरा भी कोई लमहा
मुझ पर हो न्यौछावर।
तेरी यह सौगात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।।
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