ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
93. इंतज़ार की हद होती है
कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।
बार-बार आने को कहता बार-बार की हद होती है।।
कल का वादा करते-करते
जाने कितने दिन बीते हैं।
उसका रस्ता देख-देख कर
नयन आँसुओं से रीते हैं।
मगर नहीं वो अब तक आया ऐतबार की हद होती है।
कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।।
माना अब तक सुख देती हैं
पहली मुलाकात की यादें।
पर बस इतनी यादों के सँग
कैसे सारी उम्र बिता दें।
कभी किसी के मिलने में क्या एक बार की हद होती है।
कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।।
नहीं समझ में आया जब यह-
हम क्या सोचें और विचारें।
हमने अपने दिल से पूछा-
कब तक उसकी राह निहारें?
दिल बोला- ताउम्र निहारो, कहीं प्यार की हद होती है।
कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।।
बार-बार आने को कहता बार-बार की हद होती है।।
कल का वादा करते-करते
जाने कितने दिन बीते हैं।
उसका रस्ता देख-देख कर
नयन आँसुओं से रीते हैं।
मगर नहीं वो अब तक आया ऐतबार की हद होती है।
कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।।
माना अब तक सुख देती हैं
पहली मुलाकात की यादें।
पर बस इतनी यादों के सँग
कैसे सारी उम्र बिता दें।
कभी किसी के मिलने में क्या एक बार की हद होती है।
कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।।
नहीं समझ में आया जब यह-
हम क्या सोचें और विचारें।
हमने अपने दिल से पूछा-
कब तक उसकी राह निहारें?
दिल बोला- ताउम्र निहारो, कहीं प्यार की हद होती है।
कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।।
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