ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
82. जाने ये कैसे रिश्ते हैं
जाने ये कैसे रिश्ते हैं जाने ये कैसे नाते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वो हम तुमसे कह जाते हैं।।
तुम कभी हक़ीक़त लगते हो
तुम कभी लगो सपने जैसे।
तुम कभी पराये लगते हो
तुम कभी लगो अपने जैसे।
पर तुम अपनों से बढ़कर हो हम सच-सच तुम्हें बताते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वो हम तुमसे कह जाते हैं।।
तुम कभी तृप्ति लगते हमको
तुम कभी प्यास लगते हमको।
तुम कभी दूर लगते हमको
तुम कभी पास लगते हमको।
पर आँख बन्द कर देखें तो नज़दीक हमेशा पाते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वो हम तुमसे कह जाते हैं।।
तुम बसे हमारी धड़कन में
तुम बसे हमारी साँसों में।
तुम हमें हौसला देते हो
तुम रहते हो विश्वासों में।
जितना तुम भाते हो शायद उतना हम तुमको भाते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वो हम तुमसे कह जाते हैं।।
जो नहीं किसी से कह पाते वो हम तुमसे कह जाते हैं।।
तुम कभी हक़ीक़त लगते हो
तुम कभी लगो सपने जैसे।
तुम कभी पराये लगते हो
तुम कभी लगो अपने जैसे।
पर तुम अपनों से बढ़कर हो हम सच-सच तुम्हें बताते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वो हम तुमसे कह जाते हैं।।
तुम कभी तृप्ति लगते हमको
तुम कभी प्यास लगते हमको।
तुम कभी दूर लगते हमको
तुम कभी पास लगते हमको।
पर आँख बन्द कर देखें तो नज़दीक हमेशा पाते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वो हम तुमसे कह जाते हैं।।
तुम बसे हमारी धड़कन में
तुम बसे हमारी साँसों में।
तुम हमें हौसला देते हो
तुम रहते हो विश्वासों में।
जितना तुम भाते हो शायद उतना हम तुमको भाते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वो हम तुमसे कह जाते हैं।।
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