ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
81. मैंने अम्बर चूम लिया
बिंदी चूमी मेंहदी चूमी और महावर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।
जिस दिन वो मेरे घर आया
महक उठा सारा घर-आँगन।
ख़ुशबू के सागर में गहरे
डूब गया यों मेरा तन-मन।
देहरी चूमी आँगन चूमा फिर सारा घर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।
सुन्दरता को और निखारें
ऐसे गहनों का क्या कहना।
उन गहनों के साथ-साथ था
लाज-शरम का अनुपम गहना।
बेंदी चूमी कंगन चूमा फिर हर ज़ेवर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।
दिल में जिसे छुपा रक्खा था
वो आ गया निगाहों में अब।
जो सुधियों में रहा अभी तक
उतरा है कविताओं में अब।
गीतों में भर गयी मधुरता वो मीठा स्वर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।
कैसे उसे बताऊँ उसने
मुझ पर क्या उपकार किया है?
मेरे मन में पावनता का
उसने यों संचार किया है-
मंदिर की सीढ़ी चूमी तो लगता- ईश्वर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।
जिस दिन वो मेरे घर आया
महक उठा सारा घर-आँगन।
ख़ुशबू के सागर में गहरे
डूब गया यों मेरा तन-मन।
देहरी चूमी आँगन चूमा फिर सारा घर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।
सुन्दरता को और निखारें
ऐसे गहनों का क्या कहना।
उन गहनों के साथ-साथ था
लाज-शरम का अनुपम गहना।
बेंदी चूमी कंगन चूमा फिर हर ज़ेवर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।
दिल में जिसे छुपा रक्खा था
वो आ गया निगाहों में अब।
जो सुधियों में रहा अभी तक
उतरा है कविताओं में अब।
गीतों में भर गयी मधुरता वो मीठा स्वर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।
कैसे उसे बताऊँ उसने
मुझ पर क्या उपकार किया है?
मेरे मन में पावनता का
उसने यों संचार किया है-
मंदिर की सीढ़ी चूमी तो लगता- ईश्वर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।
(प्रिय देवल आशीष के गीत 'अक्षर-अक्षर चूम लिया' से प्रभावित होकर)
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