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ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको

मेरे गीत समर्पित उसको

कमलेश द्विवेदी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :295
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9589
आईएसबीएन :9781613015940

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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे

81. मैंने अम्बर चूम लिया

 

बिंदी चूमी मेंहदी चूमी और महावर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।

जिस दिन वो मेरे घर आया
महक उठा सारा घर-आँगन।
ख़ुशबू के सागर में गहरे
डूब गया यों मेरा तन-मन।
देहरी चूमी आँगन चूमा फिर सारा घर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।

सुन्दरता को और निखारें
ऐसे गहनों का क्या कहना।
उन गहनों के साथ-साथ था
लाज-शरम का अनुपम गहना।
बेंदी चूमी कंगन चूमा फिर हर ज़ेवर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।

दिल में जिसे छुपा रक्खा था
वो आ गया निगाहों में अब।
जो सुधियों में रहा अभी तक
उतरा है कविताओं में अब।
गीतों में भर गयी मधुरता वो मीठा स्वर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।

कैसे उसे बताऊँ उसने
मुझ पर क्या उपकार किया है?
मेरे मन में पावनता का
उसने यों संचार किया है-
मंदिर की सीढ़ी चूमी तो लगता- ईश्वर चूम लिया।
आज धरा पर बैठे-बैठे मैंने अम्बर चूम लिया।।

(प्रिय देवल आशीष के गीत 'अक्षर-अक्षर चूम लिया' से प्रभावित होकर)

 

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