ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
|
7 पाठकों को प्रिय 386 पाठक हैं |
कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
52. मैं खोया-खोया रहता हूँ
सब कहते थे पर होता था मुझको इस पर विश्वास नहीं।
मैं खोया-खोया रहता हूँ मेरा दिल मेरे पास नहीं।।
वो मेरे पास अगर होता
क्यों आज तबीयत घबराती।
क्यों दिन में चैन नहीं आता
रातों में नींद नहीं आती।
पहले तो सब कुछ भाता था अब आता कुछ भी रास नहीं।
मैं खोया-खोया रहता हूँ मेरा दिल मेरे पास नहीं।।
यह नहीं समझ में आता है
मैं किसके हाथों छला गया।
है कौन शख्स जो मेरा दिल
चुपके से लेकर चला गया।
ख़ुद मुझको उसकी हरकत का क्यों हो पाया आभास नहीं?
मैं खोया-खोया रहता हूँ मेरा दिल मेरे पास नहीं।।
ऐसा लगता- वो ऐसा है
जो ख़ूब जानता है मुझको।
मैं ख़ूब मानता हूँ उसको
वो ख़ूब मानता है मुझको।
शायद मुझको इस चोरी का हो सका तभी अहसास नहीं।
मैं खोया-खोया रहता हूँ मेरा दिल मेरे पास नहीं।।
मैं खोया-खोया रहता हूँ मेरा दिल मेरे पास नहीं।।
वो मेरे पास अगर होता
क्यों आज तबीयत घबराती।
क्यों दिन में चैन नहीं आता
रातों में नींद नहीं आती।
पहले तो सब कुछ भाता था अब आता कुछ भी रास नहीं।
मैं खोया-खोया रहता हूँ मेरा दिल मेरे पास नहीं।।
यह नहीं समझ में आता है
मैं किसके हाथों छला गया।
है कौन शख्स जो मेरा दिल
चुपके से लेकर चला गया।
ख़ुद मुझको उसकी हरकत का क्यों हो पाया आभास नहीं?
मैं खोया-खोया रहता हूँ मेरा दिल मेरे पास नहीं।।
ऐसा लगता- वो ऐसा है
जो ख़ूब जानता है मुझको।
मैं ख़ूब मानता हूँ उसको
वो ख़ूब मानता है मुझको।
शायद मुझको इस चोरी का हो सका तभी अहसास नहीं।
मैं खोया-खोया रहता हूँ मेरा दिल मेरे पास नहीं।।
¤ ¤
|
लोगों की राय
No reviews for this book