ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
51. ये दुनिया दीवानों की है
ये दुनिया है आँसू की भी ये दुनिया मुस्कानों की है।
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है।।
यहाँ सदा मस्ती का आलम
मस्ती के रिश्ते-नाते हैं।
लाख गैर हों मगर यहाँ पर
आकर अपने बन जाते हैं।
जो मस्ती में ख़ुद को भूलें ये ऐसे मस्तानों की है।
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है।।
क्या मिल जाता कभी शमा को
क्या परवाना ले लेता है।
वो तिल-तिल कर जल जाती है
वो भी जान लुटा देता है।
क्या है तुम्हें पता ये दुनिया ऐसे ही अफ़सानों की है।
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है।।
रहिमन कहें- ‘प्रेम की दुनिया
में बस वही निभा सकता है।
कभी ज़रूरत पड़ने पर जो
अपना शीश कटा सकता है।‘
जान हथेली पर जो रखते ये ऐसे नादानों की हैं।
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है।।
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है।।
यहाँ सदा मस्ती का आलम
मस्ती के रिश्ते-नाते हैं।
लाख गैर हों मगर यहाँ पर
आकर अपने बन जाते हैं।
जो मस्ती में ख़ुद को भूलें ये ऐसे मस्तानों की है।
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है।।
क्या मिल जाता कभी शमा को
क्या परवाना ले लेता है।
वो तिल-तिल कर जल जाती है
वो भी जान लुटा देता है।
क्या है तुम्हें पता ये दुनिया ऐसे ही अफ़सानों की है।
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है।।
रहिमन कहें- ‘प्रेम की दुनिया
में बस वही निभा सकता है।
कभी ज़रूरत पड़ने पर जो
अपना शीश कटा सकता है।‘
जान हथेली पर जो रखते ये ऐसे नादानों की हैं।
सोच-समझकर आना साथी ये दुनिया दीवानों की है।।
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