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मेरे गीत समर्पित उसको

कमलेश द्विवेदी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :295
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9589
आईएसबीएन :9781613015940

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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे



रस-परिपाक और छंद आदि की दृष्टि से निष्कलंक और

प्यारे गीतों का सुंदर गुलदस्ता है

डॉ॰ कमलेश द्विवेदी का यह गीत-संग्रह
- डॉ. कुँअर बेचैन

मानव-जीवन अपने-आप में तो वरदान है ही किन्तु मानव-जीवन को भी परमात्मा ने जो सबसे बड़ा वरदान दिया है, वह है प्रेम। प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जिसकी अभिव्यक्ति सुकोमल फूलों की आनंददायी सुगंध के रूप में मन और सारे वातावरण को महकाकर व्यक्ति के व्यवहार को सुकोमल बनाती है। इंसान के लिए प्रेम से बड़ा अन्य कोई प्रेरणा-स्रोत भी नहीं है। वह प्रस्थान-बिन्दु भी है और लक्ष्य भी। प्रेम जीवन में रस तो घोलता ही है, जीवन के रहस्य भी खोलता है। प्रेम, प्रेम करने वाले के जीवन को तो सुंदर बनाता ही है, संसार को भी सुंदर बनाने की कल्पना करता है। प्रेम व्यक्ति को दूसरों से भी जोड़ता है। प्रेम की आहट मात्र ही व्यक्ति को भाव-विभोर बना देती है और बिन्दु को विस्तृत आकार देती है। प्रेम ही व्यक्ति का व्यक्ति तक और ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल रास्ता है। कविवर डॉ कमलेश द्विवेदी ने भी हिन्दी तथा अन्य भाषाओं के कवियों की तरह अपने इस गीत-संग्रह में इसी प्रेम की विभिन्न छवियों को बहुत सुंदर ढंग से अभिव्यक्त किया है।

प्रेम में दो पात्र होते हैं- एक वह जिससे प्रेम किया जाता है, साहित्यिक भाषा में जिसे आलंबन कहा जाता है और दूसरा वह जो प्रेम करता है साहित्यिक भाषा में जिसे आश्रय कहते हैं। गीतों में सामान्यत: गीतकार ही आश्रय के रूप में रहता है अर्थात् प्रेमी के रूप में। उसके सामने उसका प्रिय होता है। कमलेश द्विवेदी जी भी आश्रय के रूप में अपने गीतों में दिखाई देते हैं। वे अपने प्रिय के सौन्दर्य- तन और मन दोनों सौंदर्य- की सुंदर अभिव्यक्ति करते हैं। उनके गीतों में प्रिय का सौंदर्य सागर की तरह हिलोरें मारता है, जिसमें कवि भीगता रहता है।

प्रेम की दो स्थितियाँ हैं- एक संयोग श्रृंगार की और दूसरी विप्रलंभ श्रृंगार की। कवि कमलेश द्विवेदी ने इन दोनों ही स्थितियों को अपने गीतों में स्थान दिया है। प्रेम को ही रसों में रस-राज और श्रृंगार रस की निधि माना जाता है। प्रेम को ही इस रस का स्थायी भाव माना जाता है जिसे रति के नाम से पुकारा जाता है। कवि ने अपने गीतों में इस स्थायी भाव को बड़ी खूबी से और संयत भाषा में प्रकट किया है। इसके लिए इन्होंने विभिन्न अनुभावों और उद्दीपनों का सहारा लिया है। जहाँ अवसर मिला है वहाँ प्रकृति के वातावरण को भी उद्दीपन बनाया गया है। विप्रलंभ अर्थात् वियोग श्रृंगार की स्थितियों को भी कवि ने अपने गीतों में स्थान दिया है। वियोग की चार अवस्थाएँ मानी जाती हैं- 'पूर्वराग अर्थात् प्रेमी द्वारा प्रिय को देखे बिना ही विरह में तड़पने की स्थिति, मान अर्थात् प्रिय के रूठने की स्थिति, प्रवास अर्थात् प्रिय के परदेस चले जाने की स्थिति और मरण अर्थात् प्रिय की मृत्यु।' कवि ने स्थान-स्थान पर प्रथम तीनों अवस्थाओं का सांकेतिक चित्रण किया है। इसी प्रकार विरह की दस दशाओं का भी चित्रण इन गीतों में हुआ है। ये दशाएँ हैं- 'अभिलाषा, चिंता, स्मरण, गुणकथन, प्रलाप, उद्वेग, उन्माद, व्याधि, मूरछा और मरण।' कवि ने वियोग में तड़पते हुए प्रेमी की इन दशाओं का चित्रण करने में भी महारत हासिल की है।

गीत की सबसे बड़ी विशेषता होती है आत्माभिव्यक्ति। गीत के इसी महत्वपूर्ण गुण के कारण गीत को कवि की अनुभूति की सबसे प्रामाणिक कृति कहा जाता है। कवि गीतों में ही अपने सच्चे भावों को सीधे-सीधे कह पाता है क्योंकि इस साहित्यिक विधा में वह ही प्रमुख नायक होता है। कमलेश जी ने अपने जज़्बात की विविध तरंगों को अपने इन गीतों में इस प्रकार शब्दबद्ध किया है कि वे दूसरों के मन में भी इसी प्रकार के जज़्बात जगाने में सफल हुए हैं अर्थात् इनके गीतों द्वारा व्यक्तिगत अनुभूतियों का सामान्यीकरण हुआ है जिसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने साधारणीकरण नाम दिया है और जिसे उन्होंने श्रेष्ठ साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता बताया है। गीत की दूसरी विशेषता है गेयता। कमलेश जी के गीत गेयता की दृष्टि से भी बहुत सफल हुए हैं। इसके पीछे जो कारण है वह है- कवि की शब्द-संयोजन की कला और उनका छंद-ज्ञान। स्वर-मैत्री, वर्ण-मैत्री और शब्द-मैत्री के साथ-साथ सरल-सहज प्रतीक और बिम्ब तथा बिना किसी प्रयास के आए हुए अलंकार और भाषा की मुहावरेदारी ने भी इनके गीतों में माधुर्य तथा रसमयता की सृष्टि की है। भाषा की प्रांजलता और शब्दों के लाक्षणिक प्रयोगों ने भी इन गीतों को उदात्तता प्रदान करते हुए सर्व-सुलभ एवं प्रिय बना दिया है। मैं हिन्दी काव्य-मंचों पर हास्य-व्यंग्य के एक आवश्यक कवि के रूप में प्रसिद्ध, किन्तु दूसरी ओर महत्वपूर्ण गीतकार और ग़ज़लकार के रूप में जाने-पहचाने और अनेक सम्मान तथा पुरस्कार-प्राप्त कवि डॉ. कमलेश द्विवेदी जी के प्रेम-गीतों के पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित होने के शुभ अवसर पर इन्हें हार्दिक बधाइयाँ देता हूँ और आशा करता हूँ कि हमें इनके अन्य महत्वपूर्ण संग्रह भी पढ़ने को मिलेंगे।

गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
मो. - 09818379422


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