ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
28. मुझको तुमसे प्यार नहीं है
तुम स्वीकार करो न करो पर मुझको यह स्वीकार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।।
माना क्या है अर्थ प्यार का
मुझको बिलकुल नहीं पता है।
और प्यार की परिभाषा भी
मैं न बता सकता हूँ, क्या है।
फिर भी लगता- बिना तुम्हारे कुछ भी यह संसार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।।
प्यार शब्द ढाई आखर का
पर इसमें कितनी गहराई।
कोई कितना भी डूबा हो
लेकिन इसकी थाह न पाई।
सच मानो इस एक शब्द का कोई पारावार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।।
संत कबीरा मस्त फकीरा
इसकी महिमा को यों गाये-
'ढाई आखर पढ़े प्रेम के
जो भी वो पंडित हो जाये।'
इससे बड़ा ज्ञान का जग में कोई भी भंडार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।।
माना क्या है अर्थ प्यार का
मुझको बिलकुल नहीं पता है।
और प्यार की परिभाषा भी
मैं न बता सकता हूँ, क्या है।
फिर भी लगता- बिना तुम्हारे कुछ भी यह संसार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।।
प्यार शब्द ढाई आखर का
पर इसमें कितनी गहराई।
कोई कितना भी डूबा हो
लेकिन इसकी थाह न पाई।
सच मानो इस एक शब्द का कोई पारावार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।।
संत कबीरा मस्त फकीरा
इसकी महिमा को यों गाये-
'ढाई आखर पढ़े प्रेम के
जो भी वो पंडित हो जाये।'
इससे बड़ा ज्ञान का जग में कोई भी भंडार नहीं है।
मैं न स्वप्न में भी कह सकता-मुझको तुमसे प्यार नहीं है।।
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