ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
17. मुझको मेरा गीत मिल गया
मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।
बोला-मुझको भूल गए क्या कितने दिन हो गए निहारे।।
मैंने कहा- नहीं रे पगले
तुझको कभी भुला सकता हूँ।
जिस दिन तुझको भूल गया मैं
उस दिन क्या मैं गा सकता हूँ।
तेरी याद सदा रहती है मेरे दिल में साँझ-सकारे।
मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।।
बोला गीत- चलो फिर आओ
इक-दूजे को गले लगा लें।
हम-तुम मिलकर इस दुनिया में
एक नई रचना रच डालें।
लोगों के दिल को छू जायें भाव हमारे-शब्द तुम्हारे।
मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।।
इतना कहकर गीत-मीत ने
मेरे गले डाल दी बाँहें।
ऐसे समा गया वो मुझमें-
सबको एक नज़र हम आयें।
'गीतकार' के सम्बोधन से हर कोई अब मुझे पुकारे।
मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।।
बोला-मुझको भूल गए क्या कितने दिन हो गए निहारे।।
मैंने कहा- नहीं रे पगले
तुझको कभी भुला सकता हूँ।
जिस दिन तुझको भूल गया मैं
उस दिन क्या मैं गा सकता हूँ।
तेरी याद सदा रहती है मेरे दिल में साँझ-सकारे।
मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।।
बोला गीत- चलो फिर आओ
इक-दूजे को गले लगा लें।
हम-तुम मिलकर इस दुनिया में
एक नई रचना रच डालें।
लोगों के दिल को छू जायें भाव हमारे-शब्द तुम्हारे।
मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।।
इतना कहकर गीत-मीत ने
मेरे गले डाल दी बाँहें।
ऐसे समा गया वो मुझमें-
सबको एक नज़र हम आयें।
'गीतकार' के सम्बोधन से हर कोई अब मुझे पुकारे।
मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।।
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