ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
129. हरा नहीं हो सकता है
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।।
जो भीतर से भारी होता
हल्की बात नहीं करता है।
वर्तमान की बातें करता
कल की बात नहीं करता है।
जो पल-पल ही छलक रहा हो भरा नहीं हो सकता है।
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।।
सदा छल-कपट करने में ही
जिसके मन को है सुख मिलता।
जो जीवन में अपनाता बस
धोखेबाज़ी और कुटिलता।
जो मन से ही खोटा हो वो खरा नहीं हो सकता है।
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।।
जो नदिया की तरह न मीठा
और न सागर सा गहरा हो।
जिसमें ना पर्वत सा साहस
ना धरती सा धैर्य भरा हो।
वो नदिया-पर्वत-सागर या धरा नहीं हो सकता है।
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।।
जो भीतर से भारी होता
हल्की बात नहीं करता है।
वर्तमान की बातें करता
कल की बात नहीं करता है।
जो पल-पल ही छलक रहा हो भरा नहीं हो सकता है।
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।।
सदा छल-कपट करने में ही
जिसके मन को है सुख मिलता।
जो जीवन में अपनाता बस
धोखेबाज़ी और कुटिलता।
जो मन से ही खोटा हो वो खरा नहीं हो सकता है।
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।।
जो नदिया की तरह न मीठा
और न सागर सा गहरा हो।
जिसमें ना पर्वत सा साहस
ना धरती सा धैर्य भरा हो।
वो नदिया-पर्वत-सागर या धरा नहीं हो सकता है।
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।।
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