ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
128. सपने तो सपने होते हैं
अपनों से ज़्यादा सपनों को हम दिल में सदा सँजोते हैं।
कहिये फिर कैसे मानें हम-सपने तो सपने होते हैं।।
सपनों के रंग निराले हैं
सपनों के ढंग निराले है।
कुछ ग़म पहुँचाने वाले तो
कुछ ख़ुशी लुटाने वाले है।
हम इन्हें देखकर हँसते हैं हम इन्हें देखकर रोते हैं।
कहिये फिर कैसे मानें हम-सपने तो सपने होते हैं।।
कुछ सपने अक्सर आते हैं
कुछ नहीं लौटकर आते है।
कुछ भरमाते हैं जीवन भर
कुछ जीना हमें सिखाते हैं।
ये बार-बार टूटे फिर भी मोती-सा इन्हें पिरोते हैं।
कहिये फिर कैसे मानें हम-सपने तो सपने होते हैं।।
सपनों से हमको आशा है
सपनों की अपनी भाषा है।
सीपी में मोती सा कोई
पानी में घुला बताशा है।
सपनों से क्या-क्या पाते हम सपनों में क्या-क्या खोते हैं।
कहिये फिर कैसे मानें हम-सपने तो सपने होते हैं।।
सपनों की दुनिया न्यारी है
सपनों से अपनी यारी है।
कुछ सच कर डाले हैं हमने
कुछ के हित कोशिश जारी है।
सपनों के सागर में सोते-जगते हम खाते गोते हैं।
कहिये फिर कैसे मानें हम-सपने तो सपने होते हैं।।
कहिये फिर कैसे मानें हम-सपने तो सपने होते हैं।।
सपनों के रंग निराले हैं
सपनों के ढंग निराले है।
कुछ ग़म पहुँचाने वाले तो
कुछ ख़ुशी लुटाने वाले है।
हम इन्हें देखकर हँसते हैं हम इन्हें देखकर रोते हैं।
कहिये फिर कैसे मानें हम-सपने तो सपने होते हैं।।
कुछ सपने अक्सर आते हैं
कुछ नहीं लौटकर आते है।
कुछ भरमाते हैं जीवन भर
कुछ जीना हमें सिखाते हैं।
ये बार-बार टूटे फिर भी मोती-सा इन्हें पिरोते हैं।
कहिये फिर कैसे मानें हम-सपने तो सपने होते हैं।।
सपनों से हमको आशा है
सपनों की अपनी भाषा है।
सीपी में मोती सा कोई
पानी में घुला बताशा है।
सपनों से क्या-क्या पाते हम सपनों में क्या-क्या खोते हैं।
कहिये फिर कैसे मानें हम-सपने तो सपने होते हैं।।
सपनों की दुनिया न्यारी है
सपनों से अपनी यारी है।
कुछ सच कर डाले हैं हमने
कुछ के हित कोशिश जारी है।
सपनों के सागर में सोते-जगते हम खाते गोते हैं।
कहिये फिर कैसे मानें हम-सपने तो सपने होते हैं।।
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