ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
117. देखो फिर सावन आया है
रिमझिम-रिमझिम गीत सुनाता
देखो फिर सावन आया है।।
इतनी तपन लिए थी धरती
ज्यों सीता की अग्नि-परिक्षा।
वसुधा का सारा जड़-चेतन
माँग रहा था जल की भिक्षा।
तुलसी-बिरवा आँगन का फिर
धीरे-धीरे हरियाया है।
देखो फिर सावन आया है।।
बूँदें खेल रहीं बच्चों-सी
छुआ-छुई का खेल निरन्तर।
निर्धन की अभिलाषाओं-सा
चूने लगा फूस का छप्पर।
चंदा-सूरज दिखें नहीं अब
जाने किसने भरमाया है?
देखो फिर सावन आया है।।
युवा-हृदय के भावी सपनों
जैसा बढ़ा नदी का पानी।
कजरारे घन मुझसे कहते-
मेघदूत-सी लिखो कहानी।
नयनों की नदिया में कोई
आँसू बनकर लहराया है।
देखो फिर सावन आया है।।
पंख लगाये उड़ता बचपन
ऐसे हैं सावन के झूले।
पीव-पीव रट रहा पपीहा
वो प्रियतम को कैसे भूले।
परदेशी जाने कब आये
बिन देखे मन अकुलाया है।
देखो फिर सावन आया है।।
देखो फिर सावन आया है।।
इतनी तपन लिए थी धरती
ज्यों सीता की अग्नि-परिक्षा।
वसुधा का सारा जड़-चेतन
माँग रहा था जल की भिक्षा।
तुलसी-बिरवा आँगन का फिर
धीरे-धीरे हरियाया है।
देखो फिर सावन आया है।।
बूँदें खेल रहीं बच्चों-सी
छुआ-छुई का खेल निरन्तर।
निर्धन की अभिलाषाओं-सा
चूने लगा फूस का छप्पर।
चंदा-सूरज दिखें नहीं अब
जाने किसने भरमाया है?
देखो फिर सावन आया है।।
युवा-हृदय के भावी सपनों
जैसा बढ़ा नदी का पानी।
कजरारे घन मुझसे कहते-
मेघदूत-सी लिखो कहानी।
नयनों की नदिया में कोई
आँसू बनकर लहराया है।
देखो फिर सावन आया है।।
पंख लगाये उड़ता बचपन
ऐसे हैं सावन के झूले।
पीव-पीव रट रहा पपीहा
वो प्रियतम को कैसे भूले।
परदेशी जाने कब आये
बिन देखे मन अकुलाया है।
देखो फिर सावन आया है।।
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