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ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको

मेरे गीत समर्पित उसको

कमलेश द्विवेदी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :295
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9589
आईएसबीएन :9781613015940

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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे

116. गंगा बहती जाये रे

 

गंगा बहती जाये रे- गंगा बहती जाये रे।
हर-हर-हर-हर गाकर ये गति का गीत सुनाये रे।।

झरने आँचल थामें तो
उनको लेकर संग चले।
पर्वत रस्ता रोकें तो
उनसे करती जंग चले।
जीवन कैसे जीना है गंगा हमें सिखाये रे।
गंगा बहती जाये रे- गंगा बहती जाये रे।।

चाल कभी सीधी इसकी
चाल कभी ऐसी-वैसी।
भोली भी है चंचल भी
पर्वतीय बाला जैसी।
यह अपनी सुन्दरता से किसको नहीं रिझाये रे।
गंगा बहती जाये रे- गंगा बहती जाये रे।।

जब पर्वत से चलकर ये
मैदानों में आती है।
तजकर सारी चंचलता
लाजवती बन जाती है।
ज्यों ससुरे में नयी बहू सकुचाये-शरमाये रे।
गंगा बहती जाये रे- गंगा बहती जाये रे।।

सबको गले लगाए ये
सबसे प्यार-दुलार करे।
पर्वत से सागर तक के
सपनों को साकार करे।
जिधर-जिधर से गुज़रे ये ख़ुशहाली फैलाये रे।
गंगा बहती जाये रे- गंगा बहती जाये रे।।

 

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