ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
107. बोलो अब कैसे बोलूँ मैं
जाने क्या-क्या कहना था पर कैसे अपने लब खोलूँ मैं?
तुमने मेरे होंठ सी दिये बोलो फिर कैसे बोलूँ मैं?
मुझको नहीं समझ में आता
मैंने कोई ग़लती की है।
तुम्हीं बता दो किस ग़लती की
तुमने मुझे सज़ा यह दी है।
इससे बड़ी सज़ा दे देना अपना दोष जान तो लूँ मैं।
तुमने मेरे होंठ सी दिये बोलो फिर कैसे बोलूँ मैं?
मुझको दिल की बातें कहने
का तुमने अधिकार दिया है।
तुम इसको अपराध मान लो
तो मैंने अपराध किया है।
पर मुस्कानों का रँग कैसे अपने अश्कों से धो लूँ मैं?
तुमने मेरे होंठ सी दिये बोलो फिर कैसे बोलूँ मैं?
फिर भी यह विश्वास मुझे है
मेरा दिल चुप नहीं रहेगा।
जो कुछ अधर नहीं कह पाये
तुमसे मेरा मौन कहेगा।
यह विश्वास घुला साँसों में इसीलिए अब तक डोलूँ मैं।
तुमने मेरे होंठ सी दिये बोलो फिर कैसे बोलूँ मैं?
तुमने मेरे होंठ सी दिये बोलो फिर कैसे बोलूँ मैं?
मुझको नहीं समझ में आता
मैंने कोई ग़लती की है।
तुम्हीं बता दो किस ग़लती की
तुमने मुझे सज़ा यह दी है।
इससे बड़ी सज़ा दे देना अपना दोष जान तो लूँ मैं।
तुमने मेरे होंठ सी दिये बोलो फिर कैसे बोलूँ मैं?
मुझको दिल की बातें कहने
का तुमने अधिकार दिया है।
तुम इसको अपराध मान लो
तो मैंने अपराध किया है।
पर मुस्कानों का रँग कैसे अपने अश्कों से धो लूँ मैं?
तुमने मेरे होंठ सी दिये बोलो फिर कैसे बोलूँ मैं?
फिर भी यह विश्वास मुझे है
मेरा दिल चुप नहीं रहेगा।
जो कुछ अधर नहीं कह पाये
तुमसे मेरा मौन कहेगा।
यह विश्वास घुला साँसों में इसीलिए अब तक डोलूँ मैं।
तुमने मेरे होंठ सी दिये बोलो फिर कैसे बोलूँ मैं?
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