ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
108. कैसे पावस गीत लिखूँ मैं
कैसे पावस गीत लिखूँ मैं सूखे मौसम में?
सब कुछ सूखा-सूखा लगता बारिश के ग़म में।।
बरखा की ऋतु जोड़ रही है
तपती यादों से।
सावन-भादों नहीं लग रहे
सावन-भादों से।
'अभी जेठ-बैशाख चल रहा - यों लगता भ्रम में।
कैसे पावस गीत लिखूँ मैं सूखे मौसम में?
कहीं ज़रा-सी भी हरियाली
ऩज़र नहीं आये।
'बारिश' लिखना चाहूँ लेकिन
'सूखा' लिख जाये।
क़लम वही लिखती जो होता है अन्तरतम में।
कैसे पावस गीत लिखूँ मैं सूखे मौसम में?
'काग़ज़ वाली नाव बना दो'
कोई नहीं कहे।
सुखिया की आँखों में सुख के
सपने नहीं रहे।
क्या गा सकता गीत ख़ुशी के कोई मातम में?
कैसे पावस गीत लिखूँ मैं सूखे मौसम में?
बादल तो आते हैं लेकिन
निर्जल ही आते।
कंठ थक गये 'काले मेघा
पानी दे' गाते।
मेघ-मल्हार कहाँ से आये स्वर की सरगम में?
कैसे पावस गीत लिखूँ मैं सूखे मौसम में?
सब कुछ सूखा-सूखा लगता बारिश के ग़म में।।
बरखा की ऋतु जोड़ रही है
तपती यादों से।
सावन-भादों नहीं लग रहे
सावन-भादों से।
'अभी जेठ-बैशाख चल रहा - यों लगता भ्रम में।
कैसे पावस गीत लिखूँ मैं सूखे मौसम में?
कहीं ज़रा-सी भी हरियाली
ऩज़र नहीं आये।
'बारिश' लिखना चाहूँ लेकिन
'सूखा' लिख जाये।
क़लम वही लिखती जो होता है अन्तरतम में।
कैसे पावस गीत लिखूँ मैं सूखे मौसम में?
'काग़ज़ वाली नाव बना दो'
कोई नहीं कहे।
सुखिया की आँखों में सुख के
सपने नहीं रहे।
क्या गा सकता गीत ख़ुशी के कोई मातम में?
कैसे पावस गीत लिखूँ मैं सूखे मौसम में?
बादल तो आते हैं लेकिन
निर्जल ही आते।
कंठ थक गये 'काले मेघा
पानी दे' गाते।
मेघ-मल्हार कहाँ से आये स्वर की सरगम में?
कैसे पावस गीत लिखूँ मैं सूखे मौसम में?
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