ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
100. कितने रिश्तों को ठुकराकर
कितने रिश्तों को ठुकराकर मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ा।
ऐसे रिश्ते को भी तुमने शीशे-सा पल भर में तोड़ा।।
तपती हुई सड़क पर मीलों
जिस रिश्ते के पीछे भागा।
नायलॉन समझा था जिसको
वो तो निकला कच्चा धागा।
जिससे मिलनी थी गति मुझको वही बन गया पथ का रोड़ा।
कितने रिश्तों को ठुकराकर मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ा।।
तुम कितने अपने थे मेरे
फिर कैसे हो गए पराये।
सात-सात जन्मों के वादे
सात बरस भी निभा न पाये।
इतनी दूर साथ चलकर फिर क्यों तुमने मुझसे मुँह मोड़ा।
कितने रिश्तों को ठुकराकर मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ा।।
ऐसा रिश्ता टूट गया तो
अब मैं किसको गले लगाऊँ?
नहीं समझ में आता है यह-
क्या मैं करूँ, कहाँ मैं जाऊँ?
जाने कैसे चौराहे पर तुमने मुझको लाकर छोड़ा।
कितने रिश्तों को ठुकराकर मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ा।।
ऐसे रिश्ते को भी तुमने शीशे-सा पल भर में तोड़ा।।
तपती हुई सड़क पर मीलों
जिस रिश्ते के पीछे भागा।
नायलॉन समझा था जिसको
वो तो निकला कच्चा धागा।
जिससे मिलनी थी गति मुझको वही बन गया पथ का रोड़ा।
कितने रिश्तों को ठुकराकर मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ा।।
तुम कितने अपने थे मेरे
फिर कैसे हो गए पराये।
सात-सात जन्मों के वादे
सात बरस भी निभा न पाये।
इतनी दूर साथ चलकर फिर क्यों तुमने मुझसे मुँह मोड़ा।
कितने रिश्तों को ठुकराकर मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ा।।
ऐसा रिश्ता टूट गया तो
अब मैं किसको गले लगाऊँ?
नहीं समझ में आता है यह-
क्या मैं करूँ, कहाँ मैं जाऊँ?
जाने कैसे चौराहे पर तुमने मुझको लाकर छोड़ा।
कितने रिश्तों को ठुकराकर मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ा।।
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