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मेरा जीवन तथा ध्येय

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9588
आईएसबीएन :9781613012499

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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान


मैं यह बता देना चाहता हूँ कि मैं इन संन्यासी सम्प्रदायों में बहुत अधिक विश्वासी नहीं। उनमें महान गुण हैं, और उनमें दोष भी महान है। संन्यासियों और गृहस्थों के बीच पूर्ण सन्तुलन अपेक्षित है। लेकिन भारत की सारी शक्ति संन्यासी सम्प्रदायों ने हथिया ली है। हम उच्चतम शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। संन्यासी राजकुमार से बढ़कर है। भारत का ऐसा कोई सम्राट नहीं, जो गैरिक वस्त्रधारी संन्यासी के समक्ष आसन ग्रहण करें – वह अपना आसन छोड़कर खड़ा ही रहता है। इतनी अधिक शक्ति, फिर वह कितने ही अच्छे लोगों के हाथ में क्यों न हो, अच्छी नहीं – यद्यपि मैं मानता हूँ कि लोगों की सुरक्षा इन संन्यासी सम्प्रदायों के द्वारा पर्याप्त मात्रा में हुई है। ये, संन्यासी पुरोहित-प्रपंच और ज्ञान के बीच खड़े हुये हैं। सुधार और ज्ञान के ये केन्द्र हैं। इनका वही स्थान है, जो यहूदियों में पैगम्बरों का था। पैगम्बर सदा पुरोहितों के विरुद्ध प्रचार करते रहे, अन्धविश्वासों को निकाल भगाने की प्रेरणा देते रहे। बस, यही हाल भारत में हुआ। जो भी हो, पर इतनी शक्ति वहाँ ठीक नहीं, इससे से भी अच्छी रीतियों का अनुसन्धान किया जाना चाहिए। पर कार्य उसी मार्ग से किया जा सकता है, जिसमें बाधाएं सबसे कम हों। भारत की सारी राष्ट्रीय आत्मा संन्यास पर ही केन्द्रित है। तुम भारत में जाओ और गृहस्थ के रूप में कोई धर्मसन्देश कहो। हिन्दू मूँह फेरकर चले जाएंगे। पर यदि तुमने संसार त्याग दिया है, तब तो वे कहेंगे, ‘हाँ, यह ठीक है। उन्होंने संसार तज दिया है। वे सच्चे हैं, वे वही करना चाहते हैं, जो कहते हैं।’ मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि यह एक प्रचण्ड शक्ति का सूचक है। और हमें जो करना है, वह यह कि हम इसका रूपान्तर कर दें – उसे दूसरा आकार दे दें। परिव्राजक संन्यासियों के हाथों में सन्निहित यह अपरिमित शक्ति रूपान्तरित हो जानी चाहिये, जिससे जनसमूह उद्बुद्ध हो, उन्नत हो।

इस तरह कागजों पर तो हमने अच्छी योजना तैयार कर ली, पर साथ ही मैंने उसे आदर्शवाद के क्षेत्र से ग्रहण किया था। तब तक मेरी योजना शिथिल और आदर्श के रूप में थी। पर समय की गति के साथ वह स्थिर और सुस्पष्ट होती गयी। उसको सक्रिय बनाते समय मुझे उसके दोष आदि दिखाई पड़ने लगे।

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