ई-पुस्तकें >> मेरा जीवन तथा ध्येय मेरा जीवन तथा ध्येयस्वामी विवेकानन्द
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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान
इस तरह कुछ वर्ष काटे, सारे भारत का भ्रमण किया और यही कोशिश की कि हमारे विचार और आदर्श को एक निश्चित स्वरूप प्राप्त हो जाए। और भी दस वर्ष बीते। हजारों बार निराशा आयी। पर इन सब के बीच हरदम आशा की एक किरण बनी रही, और वह था हम लोगों का उत्कट पारस्परिक सहयोग, हमारा आपसी प्रेम। आज मेरे साथ लगभग सौ साथी हैं – स्त्री और पुरुष। वे ऐसे हैं कि यदि मैं एक बार शैतान भी बन जाऊँ, तो भी वे ढाढ़स बँधाते हुये कहेंगे, ‘अरे अभी हम हैं। हम तुम्हें कभी न छोड़ेंगे।’ और सचमुच यह बड़ा सौभाग्य है। सुख में, दुःख में, अकाल में, दर्द में, कब्र में, स्वर्ग में, नरक में जो मेरा साथ न छोड़े, सचमुच वही मेरा मित्र है। ऐसी मैत्री क्या हँसी-मजाक है? ऐसी मैत्री से तो मानव को मोक्ष तक मिल सकता है। यदि इस प्रकार हम प्रेम कर सकें तो उससे मोक्ष प्राप्त होता है। यदि ऐसी भक्ति आ जाए तो वही सारी ध्यान-धारणाओं का सार है। यदि इस दुनियाँ में तुममें वह भक्ति है, श्रद्धा है, वह शक्ति है, वह प्रेम है, तो तुमको किसी देवता का पूजन करने की जरूरत नहीं। और उन मुसीबत के दिनों में वही बात हम सब में थी, और उसी के बल पर हमने हिमालय से कन्याकुमारी तथा सिन्धु से ब्रह्मपुत्र तक भ्रमण किया।
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