लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> मन की शक्तियाँ

मन की शक्तियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9586
आईएसबीएन :9781613012437

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

368 पाठक हैं

स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं


ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो सम्पूर्णतया बुरी हो। यहाँ शैतान की भी उसी भाँति  उपयोगिता है, जैसे कि ईश्वर की, नहीं तो शैतान यहाँ रहता ही नहीं। जैसे मैंने तुमसे कहा ही है, हम नरक में से होकर ही स्वर्ग की ओर प्रयाण करते हैं। हमारी भूलों की भी यहाँ उपयोगिता है। बढ़े चलो। यदि तुम सोचते हो कि तुमने कोई अनुचित कार्य किया है, तो भी पीछे फिरकर मत देखो। यदि पहले तुमने इन गलतियों को न किया होता, तो क्या तुम विश्वास करते हो कि आज तुम जैसे हो, वैसे कभी हो सकते? अत: अपनी भूलों को आशीर्वाद दो। वे अदृश्य देवदूतों के समान रही हैं। तुम धन्य हो, दु:ख ! धन्य हो सुख ! तुम्हारे मत्थे क्या आता है इसकी परवाह न करो। आदर्श को पकड़े रहो। आगे बढ़ते चलो। छोटी-छोटी बातों और भूलों पर ध्यान न दो हमारी इस रण-भूमि में भूलों की धूल तो उड़ेगी ही। जो इतने नाजुक हैं कि धूल सहन नहीं कर सकते, उन्हें कतार से बाहर चले जाने दो।

अत: संघर्ष के लिए यह प्रबल निश्चय - ऐहिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए हम जितना प्रयत्न करते हैं, उससे सौगुना अधिक प्रबल निश्चय हमारी प्रथम महान् साधना है।

और फिर उसके साथ ध्यान भी होना चाहिए। ध्यान ही एकमात्र असल वस्तु है। ध्यान करो। ध्यान ही सब से महत्त्वपूर्ण है। मन की यह ध्यानावस्था आध्यात्मिक जीवन के निकटतम है। सर्व जड़ पदार्थों से मुक्त होकर आत्मा का अपने बारे में चिन्तन - आत्मा का यह अद्भुत संस्पर्श - यही हमारे दैनिक जीवन में एकमात्र ऐसा क्षण है, जब हम सांसरिकता से सम्पूर्ण पृथक् रहते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book