ई-पुस्तकें >> मन की शक्तियाँ मन की शक्तियाँस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं
यह शास्त्र किसी भी अन्य व्यवसाय से अधिक लगन माँगता है। व्यवसाय में तो अनेक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु इस मार्ग में बहुत ही थोड़े; क्योंकि यहाँ पर मुख्यत: साधक की मानसिक गठन पर ही सब कुछ अवलम्बित रहता है। जिस प्रकार व्यवसायी, चाहे दौलत जोड़ सके या न जोड़ सके, कुछ कमाई तो जरूर कर लेता है, उसी प्रकार इस शास्त्र के प्रत्येक साधक को कुछ ऐसी झलक अवश्य मिलती है, जिससे उसका विश्वास हो जाता है कि ये बातें सच हैं और ऐसे मनुष्य हो गये हैं, जिन्होंने इन सब का पूर्ण अनुभव कर लिया था।
इस शास्त्र की यह केवल रूपरेखा है। यह शास्त्र स्वत:प्रमाण तथा स्वयंप्रकाश है, औऱ किसी भी अन्य शास्त्र या विज्ञान को अपने से तुलना करने के लिए ललकारता है। दुनिया में पाखण्डी, जादूगर, धोखेबाज अनेक हो गये हैं और विशेषत: इस क्षेत्र में। ऐसा क्यों? इसीलिए कि जो व्यवसाय जितना अधिक लाभप्रद होता है, उसमें उतने ही अधिक पाखण्डी और धोखेबाज होते हैं। परन्तु उस व्यवसाय के अच्छे न होने का यह कोई कारण नहीं। एक बात औऱ बतला देना चाहता हूँ। इस शास्त्र के अनेक वादों सुनना बुद्धि के लिए चाहे बड़ी अच्छी कसरत हो, और आश्चर्यजनक बातें सुनने से चाहे तुम्हें बौद्धिक सन्तोष प्राप्त होता हो, परन्तु अगर सचमुच तुम्हें कुछ सीखने की इच्छा है, तो सिर्फ भाषणों को सुनने से काम न चलेगा। यह व्याख्यानों द्वारा नहीं सिखलाया जा सकता, क्योंकि यह शास्त्र है अनुभूतिनिष्ठ और अनुभूति ही अनुभूति प्रदान कर सकती है। यदि तुममे से सचमुच कोई अध्ययन करना चाहता है, तो उसकी सहायता देने में मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी।
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