लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> मन की शक्तियाँ

मन की शक्तियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9586
आईएसबीएन :9781613012437

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

368 पाठक हैं

स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं


यह शास्त्र किसी भी अन्य व्यवसाय से अधिक लगन माँगता है। व्यवसाय में तो अनेक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु इस मार्ग में बहुत ही थोड़े; क्योंकि यहाँ पर मुख्यत: साधक की मानसिक गठन पर ही सब कुछ अवलम्बित रहता है। जिस प्रकार व्यवसायी, चाहे दौलत जोड़ सके या न जोड़ सके, कुछ कमाई तो जरूर कर लेता है, उसी प्रकार इस शास्त्र के प्रत्येक साधक को कुछ ऐसी झलक अवश्य मिलती है, जिससे उसका विश्वास हो जाता है कि ये बातें सच हैं और ऐसे मनुष्य हो गये हैं, जिन्होंने इन सब का पूर्ण अनुभव कर लिया था।

इस शास्त्र की यह केवल रूपरेखा है। यह शास्त्र स्वत:प्रमाण तथा स्वयंप्रकाश है, औऱ किसी भी अन्य शास्त्र या विज्ञान को अपने से तुलना करने के लिए ललकारता है। दुनिया में पाखण्डी, जादूगर, धोखेबाज अनेक हो गये हैं और विशेषत: इस क्षेत्र में। ऐसा क्यों? इसीलिए कि जो व्यवसाय जितना अधिक लाभप्रद होता है, उसमें उतने ही अधिक पाखण्डी और धोखेबाज होते हैं। परन्तु उस व्यवसाय के अच्छे न होने का यह कोई कारण नहीं। एक बात औऱ बतला देना चाहता हूँ। इस शास्त्र के अनेक वादों सुनना बुद्धि के लिए चाहे बड़ी अच्छी कसरत हो, और आश्चर्यजनक बातें सुनने से चाहे तुम्हें बौद्धिक सन्तोष प्राप्त होता हो, परन्तु अगर सचमुच तुम्हें कुछ सीखने की  इच्छा है, तो सिर्फ भाषणों को सुनने से काम न चलेगा। यह व्याख्यानों द्वारा नहीं सिखलाया जा सकता, क्योंकि यह शास्त्र है अनुभूतिनिष्ठ और अनुभूति ही अनुभूति प्रदान कर सकती है। यदि तुममे से सचमुच कोई अध्ययन करना चाहता है, तो उसकी सहायता देने में मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book