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मन की शक्तियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9586
आईएसबीएन :9781613012437

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स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं


इस शास्त्र का मुझे बहुत थोड़ा ज्ञान है, परन्तु जो कुछ थोड़ा-बहुत जानता हूँ, उसके लिये तीस साल तक अभ्यास किया है और मैं छ: साल हुए लोगों को वह सिखला रहा हूँ। मुझे तीस साल लगे इसके अभ्यास के लिए। तीस साल की कड़ी कोशिश ! कभी-कभी चौबीस घण्टों में मैं बीस घण्टे साधना करता रहा हूँ। कभी रात में एक ही घण्टा सोया हूँ। कभी रात-रात भर मैंने प्रयोग किये हैं; कभी-कभी मैं ऐसे स्थानों में रहा हूँ, जहाँ किसी प्रकार का कोई शब्द न था, साँस तक की आवाज न  थी। कभी मुझे गुफाओं में रहना पड़ा है। इस बात का तुम विचार करो और फिर भी मुझे बहुत थोडा मालूम है, या कहिये बिलकुल ही नहीं। मैंने कठिनता से इस शास्त्र की मानो किनार भर छू पायी है। परन्तु मैं समझ सकता हूँ कि यह सच है, अपार है औऱ आश्चर्यजनक है।

अब यदि तुममें से कोई इस शास्त्र का सचमुच अध्ययन करना चाहता है, तो उसी प्रकार के निश्चय से आरम्भ करना होगा, जिस निश्चय से वह किसी व्यवसाय का आरम्भ करता है। यही नहीं बल्कि संसार के किसी भी व्यवसाय की अपेक्षा उसे इसमें अधिक दृढ़ निश्चय लगाना होगा।

व्यवसाय के लिए कितने मनोयोग की आवश्यकता होती है और वह व्यवसाय हमसे कितने कड़े श्रम की माँग करता है। यदि बाप.माँ, स्त्री या बच्चा भी मर जाय, तो भी व्यवसाय रुकने का नहीं। चाहे हमारे हृदय के टुकड़े-टुकड़े हो रहे हों, फिर भी हमें व्यवसाय की जगह पर जाना ही होगा, चाहे व्यवसाय का हर एक घण्टा हमारे लिए यन्त्रणा क्यों न हो। यह व्यवसाय, और हम समझते हैं कि यह ठीक ही है, इसमें कोई अन्याय नहीं है।

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