ई-पुस्तकें >> मन की शक्तियाँ मन की शक्तियाँस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं
योगियों के विभिन्न सम्प्रदाय अनेक प्रकार के प्रयोग करने लगे। कुछ लोगों ने प्रकाश के सम्बन्ध में प्रयोग किये और यह जानना चाहा कि विभिन्न वर्णों की किरणों का शरीर पर कौनसा प्रभाव पडता है। वे विशिष्ट रंग का कपड़ा पहनते थे, विशिष्ट रंग में वास करते थे और विशिष्ट रंग के ही अन्न खाते थे। इस तरह सब प्रकार के प्रयोग किये जाने लगे। दूसरों ने अपने कान बन्द कर या खुले रखकर ध्वनि के विषय में प्रयोग करना आरम्भ किया, और अन्य योगियों ने घ्राणेद्रिय के सम्बन्ध में।
सभी का ध्येय एक था - वस्तु के मूल अथवा सूक्ष्म कारण तक किसी प्रकार पहुँचना; और उनमें से कुछ लोगों ने सचमुच ही आश्चर्यदनक सामर्थ्य प्रकट किया। बहुतों ने आकाश में विचरने और उड़ने का प्रयत्न किया। मैं एक बड़े पाश्चात्य विद्वान की बतलायी हुई एक कथा कहूँगा।
सीलोन के गव्हर्नर ने, जिन्होंने यह घटना प्रत्यक्ष देखी थी, उससे कही थी। एक लड़की उपस्थित की गयी, औऱ वह पलथी मारकर स्टूल पर बैठ गयी। स्टूल लकड़ियों को आड़ी-टेढ़ी जमाकर बना दिया गया था। कुछ देर उसके उस स्थिति में बैठते के पश्चात् वह तमाशा दिखानेवाला मनुष्य धीरे-धीरे एक एक करके लकड़ियाँ हटाने लगा और वह लड़की हवा में अधर में ही लटकती रह गयी। गवर्नर ने सोचा कि इसमें कोई चालाकी है, इसलिए उन्होंने तलवार खींची और तेजी से उस लड़की के नीचे से घुमायी। परन्तु लड़की के नीचे कुछ भी नहीं था। अब कहो, यह क्या है? यह कोई जादू न था औऱ न कोई असाधारण बात ही थी। यही वैशिष्टय है। कोई भी भारतीय ऐसा न कहेगा कि इस तरह की घटना नहीं हो सकती। हिन्दू के लिए यह एक साधारण बात है। तुम जानते हो, जब हिन्दुओं को शत्रुओं से युद्ध करना होता है, तो वे क्या कहते है, “हमारा एक योगी तुम्हारे झुण्ड-के–झुण्ड मार भगायेगा।” उस राष्ट्र का यह दृढ़ विश्वास है। हाथ या तलवार में ताकत कहाँ? ताकत तो है आत्मा में।
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