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मन की शक्तियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9586
आईएसबीएन :9781613012437

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स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं


मनुष्य कितनी शक्ति सम्पादन कर सकता है, इसका कोई अन्त नहीं। भारतीय मन की यही विशेषता है कि जब किसी एक वस्तु में उसे रुचि उत्पन्न हो जाती है, तो वह उसी में मग्न हो जाता है, औऱ दूसरी बातों को भूल जाता है। तुम जानते हो कि कितने शास्त्रों का उद्गम भारतवर्ष में हुआ है। गणितशास्त्र का आरम्भ वहाँ ही हुआ। आज भी तुम लोग संस्कृत अंक गणनापद्धति के अनुसार एक, दो, तीन इत्यादि शून्य तक गिनते हो, औऱ तुमको यह भी मालूम है कि बीजगणित का उदय भारत में ही हुआ। उसी तरह न्यूटन का जन्म होने के हजारों वर्ष पूर्व ही भारतीयों को गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त अवगत था।

इस विशेषता की ओर जरा ध्यान दो। भारतीय इतिहास के एक समय में भारतवासियों का चित्त मानव और मानवी मन के अभ्यास में ही डूब गया था। और यह विषय अत्यन्त आकर्षक था, क्योंकि अपनी ध्येय- वस्तु प्राप्त करने का उन्हें यह सुलभतम तरीका लगा। इस समय भारतवासियों का ऐसा दृढ़ निश्चय हो गया था कि विशिष्ट नियमों के अनुसार परिचालित होने से मन कोई भी कार्य कर सकता है। औऱ इसीलिए मन की शक्तियाँ ही उनके अध्ययन का विषय बन गईं थीं।

जादू, मन्त्र-तन्त्र तथा अन्यान्य सिद्धियाँ कोई असाधारण बातें नहीं हैँ; ये भी उतनी ही सरलता से सिखलाई जा सकती हैं, जितना कि इसके पहले भौतिक शास्त्र सिखलाये गये थे। इन बातों पर उन लोगों का इतना दृढ़ विश्वास हो गया कि भौतिक शास्त्र करीब-करीब मरे-से हो गये। यही एक बात थी जिसने उनका मन खींच रखा था।

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