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काँच की चूड़ियाँ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9585
आईएसबीएन :9781613013120

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एक सदाबहार रोमांटिक उपन्यास

रूपा चली गई और गंगा कुछ निश्चय न कर पाई। अपने पाप का बोझ छिपाकर, वह अपने प्रियतम के प्रेम को कलंकित न करना चाहती थी। बडी देर तक वह असमंजस में डूबी रही। दीये की लौ धीमी पड़ गई। उसने उठकर बत्ती को ऊँचा किया। कुछ सोचकर पास रखी मंजू की कापी से एक कागज निकाला और उस पर अपने पिता की गाथा लिख दी। ऐसा करते समय उसे यूं अनुभव हुआ मानो उसके मन का बोझ हल्का हो गया हो।

गंगा ने कागज को लपेटा और धीरे से नंगे पाँव बाहर आँगन में आई। आकाश पर हल्के-हल्के बादल छाये हुए थे। बादलों से छन कर आती फीकी चांदनी में सब ओर सन्नाटा छाया हुआ था। क्षणभर के लिए उसने चारों ओर दृष्टि घुमाई और फिर मन को कड़ा करके छत पर चली आई।

रूपा के घर की छत गंगा के घर की छत से मिली हुई थी। रूपा के घर के ऊपर वाले कमरे में अभी तक प्रकाश था, शायद मोहन अभी तक जाग रहा था। यह कुछ ही पग का अन्तर गंगा को कोसों दूर लग रहा था।

उसने साहस बटोरा और द्वार फाँद कर उस खिड़की के पास आ ठहरी जिसमें से प्रकाश छन कर बाहर आ रहा था। घबराई दृष्टि से वह भीतर झाँकने लगी।

मोहन बिस्तर पर कोई पुस्तक पढ़ते-पढ़ते सो गया था। अभी तक उसका चेहरा पुस्तक में ढका हुआ था। गंगा ने घबराई हुई दृष्टि से कमरे को नापा और पास होकर हाथ भीतर बढ़ाया। जिस पत्र में उसने हृदय में छिपे गहरे रहस्य को छिपाया था उसे वह मोहन तक पहुंचा देना चाहती थी।

अचानक आहट हुई और उसने घबराकर अपना हाथ खींच लिया। मोहन हड़बड़ा कर उठा और पुकारा, ''कौन?''

गंगा तेजी के साथ दीवार से चिपक गई। उसका हृदय घायल पंछी के समान फड़फड़ा रहा था। शीघ्रता में मेज पर फेंका हुआ पत्र शायद नीचे गिर पड़ा। मोहन बिस्तर से उठकर खिड़की के पास चला आया। तब तक गंगा सरक कर अपनी छत पर पहुंच चुकी थी। मोहन ने एक दृष्टि उस रेंगती हुई छाया को देखा। उसे विचार भी आया कि शायद यह गंगा हो, किन्तु फिर कुछ सोचकर वह बिस्तर पर आ लेटा और सो गया।

गंगा पूरी रात सो न सकी! रात ज्यों-ज्यों बीतती गई उसकी ब्याकुलता बढ़ती ही गई। उसकी दृष्टि घर की पुरानी छत को निहारती रही। अपने ही विचार कई रूप धारण करके उसे सताते रहे। वह सोच रही थी, मोहन ने वह पत्र अवश्य पढ़ लिया होगा। उसका रहस्य जान लेने पर न जाने उसका उसके प्रति क्या व्यवहार होगा। उसने स्वयं ही अपने हाथों प्यार का गला दबोच दिया था, स्वयं वह अपने विनाश की ओर जाने लगी थी उसे इस विनाश से बचने का कोई उपाय दिखाई न दे रहा था।

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