ई-पुस्तकें >> काँच की चूड़ियाँ काँच की चूड़ियाँगुलशन नन्दा
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एक सदाबहार रोमांटिक उपन्यास
इसी समय कमरे से एक पुरुष बाहर आया और कम्मो के हाथ में उसने दो नोट थमा दिये। बंसी सन्न से चकित रह गया। यह उसका मालिक प्रताप था जो कहने को शहर गया हुआ था पर वास्तव में यहाँ अपनी वासना पूरी करके पाप का मूल्य चुका रहा था, कागज के नोटों में। शराब के नशे में लड़खड़ाता हुआ वह एक शैतान लग रहा था। बंसी के मस्तिष्क में तूफान-सा उठ रहा था।
''बस... केवल दो...'' कम्मो ने हँसते हुए प्रताप को सम्बोधित किया। बंसी को यूं अनुभव हुआ जैसे यह नारी के कंठ से निकली हुई हँसी न थी बल्कि किसी नागिन की फुंकार थी।
''दो नहीं... दस-दस के दो नोट पूरे बीस हैं...'' प्रताप ने उसके गाल पर चुटकी काटते हुए कहा।
''यहां भी हेरा-फेरी मालिक! सीमेंट में तो रेत मिलाते ही हो... पर अब...'' यूं प्रतीत हो रहा था कम्मो ने भी पी रखी है।
''बस, बक-बक न कर.... ले यह दस और ले...'' प्रताप ने दस रुपये का एक और नोट उसके हाथ में थमा दिया।
कम्मो ने प्रताप का हाथ पकड़कर उसकी अंगुलियों को हल्के से दांतों में दबा लिया। प्रताप ने तड़प कर उसे झटके से अलग कर दिया। कम्मो खिलखिलाकर हँसने लगी। प्रताप ने उसकी कमर में चुटकी ली और उसे बहां से शीघ्र चले जाने का संकेत किया।
कम्मो ने तीनों नोट चोली में रख लिये और दोबारा आने का वचन दे वह चल पड़ी। बंसी उससे छिपने के लिए पीछे हटा और अंधेरे में हो गया। सीमेंट की बोरियों के ऊपर एक खाली ड्रम रखा था। अंधेरे में बंसी की ठोकर लगी कि बिना तनिक विलम्ब के बह ड्रम नीचे लुढ़क पड़ा। वातावरण में एक शोर उठा। कम्मो जोर की चीख मारते हुए डरकर वापिस भागी और उसने प्रताप को पकड़ लिया।
''कौन?'' प्रताप उस व्यक्ति की छाया को देखकर ऊँचे स्वर में चिल्लाया। वह अपने लड़खड़ाते पांव को अभी जमा भी न पाया था कि बंसी उस धुंधले उजाले में उनके सामने आ खड़ा हुआ।
दोनों ने जब बंसी को देखा तो उनके पांव तले की धरती खिसक गई। कम्मो प्रताप से छिटककर अलग हो गई और सिर झुकाये एक ओर अंधेरे में विलीन हो गई; किन्तु प्रताप उसे सामने देखकर क्रोध में भर गया और लड़खड़ाती आवाज में चिल्लाया, ''तुम यहां क्या कर रहे हो?''
''स्टोर की बत्ती जलती देखकर चला आया...''
''यह क्यूं नहीं कहते कि बहाने से मालिक का पीछा कर रहे थे..''
''नहीं मालिक।''
''तो जाओ! मेरा मुँह क्या देख रहे हो!''
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