ई-पुस्तकें >> कलंकिनी कलंकिनीगुलशन नन्दा
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यह स्त्री नहीं, औरत के रूप में नागिन है…समाज के माथे पर कलंक है।
नीरा सिमटकर सिर घुटनों में दिए उस आहट की प्रतीक्षा करने लगी जिसे सुनने के लिए वह आतुर हो रही थी। उसका दिल धड़कने लगा और अंग-अंग में सिरहन-सी होने लगी, उसकी दृष्टि उस द्वार पर पड़ी जो द्वारकादास के कमरे में खुलता था। द्वार पर चटखनी लगी थी किन्तु फिर इस द्वार को देखकर वह भयभीत हो गई। जब भी यह बंद द्वार उसकी दृष्टि में आता उसका रोआं-रोआं कांप उठता।
वह कम्पित दिल से इस द्वार को देख ही रही थी कि उसे अपने कमरे के द्वार पर आहट सुनाई दी जैसे किसी ने धीरे से भीतर आकर चटखनी चढ़ा ली हो। नीरा ने सोचा पारस भीतर आ गया है। इतने दिनों में वह पारस से मिलती रही थी किन्तु इस समय न जाने क्यों उसकी उपस्थिति का भास करके एकाएक उसके शरीर में एक कंपकंपी छिड़ गई। उसकी धमनियों में प्रवाहित रक्त क्षणभर के लिए रुक गया और वह सिर घुटनों में दिए उस धीमी चाल की ध्वनि को सुनने लगी जो सिंगार-मेज की ओर बढ़ी आ रही थी। वह दृष्टि उठाकर उसे देखने का बल खो चुकी थी।
‘नीरू।’ आहट उसके समीप आकर रुक गई। आने वाले ने धीरे से उसे सम्बोधित किया। उत्तर न मिलने पर उसने पुकारा ‘नीरू।’
नीरा के दिल पर सहसा एक आघात-सा हुआ। एक झटके के साथ उसने गर्दन उठाई और चिल्लाई, ‘आप…।’
पारस के स्थान पर उसके सम्मुख द्वारकादास खड़ा था। अधिक शराब पीने से उसके मन का दैत्य जाग उठा था। आंखें लाल अंगार हो रही थीं और बेढब होंठ कुछ कहने को फड़फड़ा रहे थे। नीरा की धमनियों में रक्त प्रवाह तेज हो गया, दिल की धड़कन बढ़ गई। द्वारकादास को आए दिन में देखती थी किन्तु आज जो स्थिति उसके मन की हुई वह रोज से भिन्न थी। आवेश और आश्चर्य से पत्थर-सी बनी वह उसे देखने लगी।
‘हां, नीरू! मैं हूं। अपनी सांस से मदिरा की दुर्गन्ध कमरे में फैलाते हुए वह उसके सामने आ बैठा।
नीरा की बुद्धि में कुछ न आ रहा था कि क्या कहे, क्या करे…आज की रात इस समय इस दशा में द्वारकादास की उपस्थिति, वह इसके लिए कदापि तैयार न थी। द्वारकादास उसके जरी वाले दोपट्टे का कोना पकड़कर उससे खेलने लगा।
‘क्या कोई भूल की हमने यहां आकर?’ बहके स्वर में वासनामयी दृष्टि से नीरा को देखते हुए वह बोला।
‘वे कहां है?’ नीरा ने क्षुब्ध मन से पूछा।
‘आज की रात हमने…भगा दिया…तेरे पारस को।’
नीरा घबरा गई इस वाक्य पर किन्तु, शीघ्र समझते हुए उसने शब्द को दोहराया।
‘भगा दिया…।’
‘हां…सदा के लिए तो नहीं…बस आज की रात…।’
‘कहां हैं वे?’
‘पूना गया है—एक जरूरी काम पर…सवेरे आ जाएगा।’
‘किन्तु आज तो…।’
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