ई-पुस्तकें >> कलंकिनी कलंकिनीगुलशन नन्दा
|
4 पाठकों को प्रिय 241 पाठक हैं |
यह स्त्री नहीं, औरत के रूप में नागिन है…समाज के माथे पर कलंक है।
पारस ने बात समाप्त की और ध्यान से नीरा के चेहरे को देखा। उसकी मुखाकृति से यह प्रतीत होता था कि उस फिलासफी को समझने के लिए उसे मस्तिष्क पर बल देना पड़ रहा है।
‘लो मैंने अपना भाषण आरम्भ कर दिया—मानो मैं इसका विशेषज्ञ हूं, यह तो अपना-अपना विचार है और विचार गलत भी हो सकता है।’ उसे मौन देखकर पारस फिर बोला।
‘नहीं, आपका विचार गलत नहीं।’
‘इसका क्या प्रमाण हो सकता है?’
‘प्रमाण। यही, आप जीवन को समीप से देखते हैं—उसके अधिक निकट हैं।’
पारस इसका उत्तर देने को ही था कि टेलीफोन की घंटी ने इस वार्तालाप के तांते को तोड़ दिया। उसने झट उठकर रिसीवर उठाया और सुनने लगा। फोन द्वारकादास का था जो उसे दफ्तर बंद करने की आज्ञा दे रहा था। पारस ने फोन पर कुछ और बातें करनी चाहीं किन्तु नीरा ने उसे संकेत से रोक दिया कि वह उसके वहां आने का वर्णन न करे।
आफिस बन्द करके घर जाने के लिए वह नीरा के साथ ही उसकी गाड़ी पर बैठ गया। नीरा रास्ते भर उसकी बातों पर विचार करती रही। गाड़ी जब बाजार की रौनक को पार करके कुछ विरान सड़क पर आई तो पारस ने मौन को भंग करते हुए पूछा—‘क्या सोच रही हैं आप मौन बैठी?’
‘एक ही बात।’ उसने दृष्टि घुमाकर पारस के चेहरे पर गड़ा ली।
‘क्या?’
‘आपसे जो लड़की स्वयं प्रेम करने लगे तो उसे शायद आजीवन तड़पना पड़े इसलिए कि आप अपने मतानुसार उसे अपना नहीं पाएंगे…उसके प्रेम को अपने कठोर नियम से ठुकरा देंगे।’
‘आप क्यों चिन्ता करती हैं? किसी को हमसे प्रेम जताने का अवसर ही नहीं आएगा।’
‘क्यों?’
‘इस सूरत पर कौन मरेगा?’
‘सूरत तो बुरी नहीं आपकी।’
‘आप शायद ठीक कहती हों किन्तु सूरत का मेकअप जो नहीं।’
‘मेकअप?’ नीरा ने आश्चर्य में यह शब्द दोहराया।
‘जी, हां…मार्डन मेकअप, अर्थात रुपया, मोटर, बंगला इत्यादि जो किसी सुन्दरी से प्रेम का नाता जोड़ने के लिए आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है।’
‘यह कोई आवश्यक नहीं कि हर लड़की की एक ही मांग हो—यों भी कहकर आपने स्त्री के प्रेम को शंका से देखा।’
‘मैं तो साधारण प्रचलित फैशन की बात कह रहा हूं—अधिकतर लड़कियां वही कुछ चाहती हैं।’
|