ई-पुस्तकें >> कलंकिनी कलंकिनीगुलशन नन्दा
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यह स्त्री नहीं, औरत के रूप में नागिन है…समाज के माथे पर कलंक है।
‘नहीं।’
‘कोई लड़की तो अवश्य देख रखी होगी?’
‘नहीं।’ पारस ने दृढ़ स्वर में अबके नीरा से आंखें मिलाते हुए कहा—मैं इस बात के विरुद्ध हूं।’
नीरा झेंप गयी किन्तु, शीघ्र ही सम्भलते हुए उसने एक बार फिर पूछा—
‘किस बात के?’
‘यही शादी-ब्याह से पहले किसी लड़की से लगाव बढ़ाना।’
‘यह क्यों?’ नीरा ने मेज पर झुककर हथेली का सहारा लेते हुए पूछा। उसकी रुचि बढ़ती जा रही थी।
पारस थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। वह शायद इस विषय को बढ़ाना नहीं चाहता था, किन्तु नीरा की प्रश्नवाचक दृष्टि को देखते हुए बोला—‘बस यों ही मन का भ्रम-सा है।’
‘क्या?’
‘मेरा विचार है कि जिस लड़की को हम पूर्णतः पहले से जान लेते हैं उससे प्रेम निभ नहीं पाता।’
‘आपका विचार दुनियावालों के विपरीत है। साधारण धारणा तो यह है कि एक दूसरे को जान लेना प्रेम की पहली सफलता है।’
‘यह सच नहीं।’ पारस अपने विचार पर दृढ़ रहा।
‘तो सच क्या है?’
‘अब मैं आपको क्या समझाऊं…छोड़िए इन बातों को।’ पारस ने विषय समाप्त करने का प्रयत्न किया।
‘नहीं आप मुझे बताइये। जीवन दर्शन जानने की मुझे बहुत इच्छा है।’ नीरा उसके और निकट होती हुई बोली।
‘मान लीजिए आप हैं।’ मानसिक खींचा-तानी पर अधिकार पाते हुए पारस ने उत्तर दिया, ‘यदि मैं आपके अधिक निकट रहूंगा तो आपकी हर दुर्बलता को जान लूंगा—हर कमजोरी को।’
कमजोरी का शब्द उसकी जबान पर आते ही नीरा का रोयां-रोयां सा कांपकर रह गया। वह घबराई हुई दृष्टि से देखने लगी जैसे सचमुच वह उसके घिनावने प्लान का रहस्य जानता हो।’
पारस ने क्षण भर रुककर बात चालू रखी, ‘जीवन का सबसे सुन्दर और प्राकृतिक आकर्षण वह होता है जो दो अनजान व्यक्तियों के मध्य हो—इस आकर्षण में एक अलौकिक आनन्द है, एक स्थिरता है, इस अन्जानपन में उत्पन्न हुई प्यार की भावना मानव को ऊंचा उठने की शक्ति देती है, वह शक्ति जिसमें वह दुर्घटनाएं छट जाती हैं, दोनों प्राणी एक दूसरे का सच्चा सहारा बन सकते हैं, एक दूसरे को पंख दे सकते हैं।’
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