ई-पुस्तकें >> कलंकिनी कलंकिनीगुलशन नन्दा
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यह स्त्री नहीं, औरत के रूप में नागिन है…समाज के माथे पर कलंक है।
‘आप निश्चय तो कीजिए द्वारकादास जी। बस…कल सवेरे तक ऊंचे घरानों के चुने हुए लड़कों की पंक्ति लगवा दूंगा आपके मकान के समाने…मनचाहा दामाद चुन लीजिएगा।’
वकील साहब की इस बात पर द्वारकादास हंसने लगा…किन्तु, इस हंसी में क्या पीड़ा छिपी होगी इसका अनुमान केवल नीरा ही लगा सकती थी…शायद इस टुकड़े-टुकड़े हंसी में वह रुदन था जो नीरा के बिछुड़ने पर छलकता था।
वकील साहब के साथ बाहर जाने से पहले द्वारकादास कुछ कागज लेने के लिए भीतर आया। नीरा को खिड़की के पास सोंचों में खोए खड़ा देखकर ठिठक गया।
‘नीरू।’ धीरे से उसके समीप जाकर कंधे पर हाथ रखते हुए उसने पूछा—‘क्या वकील साहब की बातों का बुरा मान गई?’ यह कहते हुए उसके होंठों पर एक विशेष मुस्कराहट बिखर गई। एक चिन्ताजनक मुस्कराहट, जो नीरा ने पहले कभी न देखी थी।
‘नहीं तो…।’ उसने खिड़की से बाहर देखते हुए उत्तर दिया।
‘वह तो जमानासाज ठहरे…जो मुंह में आया बक दिया…वह क्या जानें मेरी नीरू कितनी प्रसन्न है।’ यह कहते हुए उन्होंने प्यार से उसके गाल पर चुटकी ली और सांझ को समय पर लौटने का वचन देकर कमरे से बाहर निकल गए। नीरा चुपचाप खड़ी खिड़की से बाहर देखती रही—उसके कानों में जानें क्यों निरन्तर वकील के वे शब्द गूंजे जा रहे थे, ‘मेरी बात मानिए। नीरू का ब्याह कर दीजिए।’
ब्याह…यह विषय आज जीवन में पहली बार उसके मस्तिष्क में एक गंभीर विषय बनकर जाग्रत हुआ। जिस विचार को मन में आते ही पहले वह घृणा से वहीं दबा देती थी। आज स्वयं ही उसे सुहावना लग रहा था। कल्पना ने उसके मन में कई फूल खिला दिए, कई चित्र बना दिए…उसके कल्पना रूपी आकाश में कई इन्द्रधनुष लहरा दिए।
उसके विचारों के संसार को एकाएक टेलीफोन की घंटी ने छिन्न-भिन्न कर दिया। उसने झट रिसीवर उठाया और सुनने लगी। टेलीफोन द्वारकादास का था। वह जाते हुए शीघ्रता में लॉकर की चाभी तकिए की नीचे भूल गया था और नीरा को सावधानी से चाभी संभालकर रखने का आदेश दे रहा था।
नीरा ने उसके शयन-कक्ष में जाकर तकिए के नीचे से चाभी उठा ली। फिर कुछ सोचकर दबे पांव सेफ के पास आकर उसने लॉकर खोल डाला। इससे पहले उसने कभी अंकल की धन-दौलत में झांकने का साहस न किया था, उसे इच्छा न हुई थी कभी इस बात की…आज न जाने उसे यह विचार क्यों आया। लॉकर सौ-सौ के नोटों के पुलिन्दों से भरपूर था। कई सोने की छोटी-छोटी ईंटें और मखमली डिब्बों में रखे हुए जगमगाते हीरे थे। धन की यह झलक देखकर वह विस्मित रह गई और कितनी देर खड़ी देखती रही।
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