ई-पुस्तकें >> खामोश नियति खामोश नियतिरोहित वर्मा
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कविता संग्रह
गुनाह
गुनाहों की सज़ा ...........
एक पल में मिल जाएगी वक्त पाकर,
खोने पर मजबूर कर देगा,
वफ़ा और गुनाहों की तराजू में रखकर
फैसला करेगी।
ताजिंदगी और वक्त के पहरेदार
जकड कर ज़ंजीरों में
जिंदगी की अदालत में सारे गुनाहों की
.......सज़ा देंगे।
बेगुनाह हैं, फिर सज़ा के हकदार नहीं,
लेकिन सज़ा तो मिलेगी
जिंदगी से नज़र मिलाने की,
उसकी अदालत में............।
मिलते वक्त कई वादे थे,
साजिश थी, या कुछ और,
कहा था सब यहीं है,
यहाँ तो कुछ भी नहीं,
ये साजिश थी या वक्त की रंजिश,
या मेरा गुनाह,
ये साजिश थी या हक़ीकत,
ये रजा थी, या सज़ा गुनाह की,
या कोई चाल.........।
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